सोमवार, 1 मार्च 2010

संभावना 

मन की मिट्टी को
सूखने मत देना .
बंजर भूमि पर
कुछ नहीं उगता .

सींचते रहना
मन की मिट्टी को
धीरे - धीरे 
आंसुओं से,
ओस की बूँद जैसे
पावन विश्वास से .

आँख जब नम होगी,
किसी के मन की
पीड़ा समझेगी ,
तब ही 
भावुक मन की
उर्वर भूमी से  
फूटेगा अंकुर.

अंततः
फूल 
खिलें ना खिलें,
बड़ा होगा
नन्हा पौधा,
फूल खिलने की
संभावना लिए .









 

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

धुकधुकी

चलो हाथ पकड़ो !
दोनों मिल कर,
फिरकी लेते हैं
तेज़ी से !
.. लट्टू की तरह !
.. पृथ्वी की तरह !

देखें ..
चारों तरफ़ घूमती दुनिया 
हमसे कितनी  तेज़ 
चक्कर लगाती है !
या फिर यूँ ही इतराती है !
ज़िन्दगी जो रोज़ हमें नचाती है !
हमारे साथ चकराती  
कैसी नज़र आती है !

छूट ना जाये !
कस कर पकड़ना हाथ !
हाँ ! ये हुई ना कुछ बात !
एक-दूसरे के भरोसे,
एक-दूजे के साथ,
कुछ करने की
और ही है बात !

पैर धरती पर जमा कर ..
जैसे मथनी चला कर ..
जीवन की धुरी पर थिरक कर,
हर श्वास पर जप कर,
जिजीविषा का गीत ..
चख लें
चिंतन के मंथन का
नवनीत !

धिनक धिनक धिन ..
धिनक धिनक धिन ..
जी में एक धुन
ले रही है फिरकी..
कर रही है ठिठोली  ..
कहो तो सुनाऊं  !

खुशी भी
जुगनू की रोशनी सी
आँख-मिचोली है .
एक पल दीये सी टिमटिमाती है
और पलक झपकते गुम भी हो जाती है !
यही तो जीवन की अठखेली है !
कभी ना बूझी जाये वो पहेली है !

पर सुनो !
बूझ कर भी क्या होगा ?
जो होना है वही होगा !
हमारे साथ हमारा भवितव्य चलेगा .

बहरहाल इस पल का सच यही है
कि हमारे साथ ज़िंदगी भी 
चक्रम हो रही है !
हमारे कलेजे की
धुकधुकी
तेज़ हो रही है !
और कह रही है -
इस पल का हासिल यही है
कि लकीरें
तेरी-मेरी हथेली की
आपस में जुड़ रही हैं, 
मैं तेरी
और तू मेरी
सहेली है .








  

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

रंगरेज़

तुम बातों के रंगरेज़ हो .
जिस रंग में चाहो ,
रंग दो , 
अपनी बातों को .

रंग फीका ना हो .
चोखा हो ,
चटकीला हो ,
पर पक्का हो !

जब चढ़े तो
मन में तरंग हो !
पग चंग, मृदंग, पतंग हो !

जब रचे तो
मेहंदी, हल्दी ..
रोली, ठिठोली ..
टेसू, गुलमोहर  ..
फागुन  की फुहार  ..
इन्द्रधनुष  हो !

तुम बातों के रंगरेज़ हो .
ऐसे रंग में रंग दो
अपनी बातों को ,
मानो  हर  सोच
एक  छंद हो .