बापू से और शास्त्री जी से
हमने पूछे अनगिनत सवाल ।
मंडवा कर चित्र आदमकद
सादर दिया खूंटी पर टांग ।
प्रतिमा भव्य गढ़वा कर
सङक किनारे कर अनावरण
बाकायदा किया दरकिनार ।
निबंध लिखो बढ़िया-सा बच्चों !
नंबर पाओ शानदार !
दिवस मनाओ ज़ोर-शोर से !
करो बङी-सी सेमिनार !
और भूल जाओ उसके बाद ।
महापुरुषों की विचारधारा
ग़लती से भी बरखुरदार !
दिल पर मत ले लेना !
हो जाएगा सत्यानाश !
आदर्श मानवों को देखो
ताक पे रखा जाता है !
उनके जीवन से सीख कर
कौन जीवन जीता है !
ठोक-ठोक कर समझाया !
विसंगतियों का भय दिखाया !
पर मान गए बापू तुमको !
और शास्त्री जी के क़द को !
मुट्ठी भर ही होंगे ऐसे
एकनिष्ठ एकलव्य सरीखे
जो चले तुम्हारे रास्ते ,
और अपने स्वाध्याय के
बीज राह में बोते चले ।
ये मौन धरे कर्मठ योगी
भारत माँ के चरणों में
अर्पित कर अपनी मेधा
अखंड यज्ञ करते रहे ।
ये करते नहीं नुक्ताचीनी ।
जो सीख सके जो समझ सके
अपने जीवन में पिरोते रहे ।
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चित्र अंतरजाल के सौजन्य से