बुधवार, 10 जुलाई 2019
रविवार, 7 जुलाई 2019
जलमय सजल मन
सोमवार, 27 मई 2019
जिजीविषा और दुआ
आज
यह फूल खिला
उस पौधे पर,
जिस पौधे की
लगभग इति
हो चुकी थी ।
उस पौधे पर,
जिस पौधे की
लगभग इति
हो चुकी थी ।
पर जब
किसी ने कहा,
चमत्कारी
होती है आशा..
और सेवा,
उस भरोसे ने
पौधा फेंकने
नहीं दिया ।
किसी ने कहा,
चमत्कारी
होती है आशा..
और सेवा,
उस भरोसे ने
पौधा फेंकने
नहीं दिया ।
दिन-रात बस
मन में मनाया
जी जाए पौधा ।
मन में मनाया
जी जाए पौधा ।
मिट्टी खाद धूप जल
और देखभाल ने
पौधे में रोप दी
जिजीविषा ।
आशा ने
औषधि का
काम कर दिखाया ।
औषधि का
काम कर दिखाया ।
आज सुबह देखा
ऐसा फूल खिला !
मानो किसी ने
मांगी हो दुआ ।
ऐसा फूल खिला !
मानो किसी ने
मांगी हो दुआ ।
शुक्रवार, 24 मई 2019
India 23rd may 2019
रविवार, 12 मई 2019
कर्णफूल
आज ही खिले
ये फूल !
सुबह-सुबह इनकी
भीनी-भीनी
सुगंध ने
हिला कर जगाया ।
ये फूल !
सुबह-सुबह इनकी
भीनी-भीनी
सुगंध ने
हिला कर जगाया ।
उठते ही
स्मरण हो आया..
मोती सरीखी
जो कली थी,
संभव है
खिल गई हो !
मोती सरीखी
जो कली थी,
संभव है
खिल गई हो !
भाग कर
खिड़की से
झांक के देखा ।
झांक के देखा ।
सचमुच
फूल खिले थे !
फूल खिले थे !
शरारत से
मुस्कुरा के
हिल-हिल के
हौले-हौले
अभिवादन
कर रहे थे ।
मुस्कुरा के
हिल-हिल के
हौले-हौले
अभिवादन
कर रहे थे ।
दिन-प्रतिदिन
कई दिनों तक
पौधे को सींचना
पालना-पोसना
जब-तब
बार-बार देखना कहीं
फूल तो नहीं खिला !
कई दिनों तक
पौधे को सींचना
पालना-पोसना
जब-तब
बार-बार देखना कहीं
फूल तो नहीं खिला !
देखते रहो !
संभव है
आंखों के सामने ही
फूल खिल जाए !
जतन कर के
पाले-पोसे
पौधे पर
जब फूल खिलता है,
उसे देखने की
खुशी से बढ़ कर
कोई खुशी नहीं होती ।
पाले-पोसे
पौधे पर
जब फूल खिलता है,
उसे देखने की
खुशी से बढ़ कर
कोई खुशी नहीं होती ।
हाँ जी !
आज ही खिले
मन-उपवन में
कर्णफूल से फूल !
आज ही खिले
मन-उपवन में
कर्णफूल से फूल !
गुरुवार, 2 मई 2019
भई ये लोकतंत्र है
भई ये लोकतंत्र है ..
वो भी संसार का सबसे बड़ा !
कोई क्या कह सकता है किसी को !
पर भाइयों और बहनों कभी तो सोचो !
हम इस लोकतंत्र में रहने लायक हैं क्या ?
लोकतंत्र में रहने के कर्तव्य हमें क्या होंगे पता !
संविधान में दिए अधिकार भी मालूम हैं क्या ?
फिर किसको देते हो किसका वास्ता ?
कैसा वास्ता ? मेरे भाई कैसा वास्ता ?
बंद करो ऊँची आवाज़ में चिल्लाना !
कुछ नहीं तो नागरिकता का ही पाठ पढ़ो !
खुद समझो और समझने में मदद करो !
केवल नारों से मत कृतार्थ करो जन मानस को !
अपने सिद्धांतों को खंगाल अब अमल करो !
नीचे उतरो मंच से, आसन छोड़ो और श्रम करो !
नेता को अपशब्द कह छाती मत ठोंको !
नेता हम जैसा है ! हमारे बीच से ही आता है ।
वह देश भक्त ना रहे तो अपदस्थ करो !
पर बाहर तो निकलो बिल से और वोट करो !
अफ़सर और नेता को समझाने से पहले
ख़ुद तो पहले ज़िम्मेदारी अपनी समझो !
जम कर आलोचना करो यदि उचित हो !
पर काम करो खुद भी और सबको करने दो !
वो भी संसार का सबसे बड़ा !
कोई क्या कह सकता है किसी को !
पर भाइयों और बहनों कभी तो सोचो !
हम इस लोकतंत्र में रहने लायक हैं क्या ?
लोकतंत्र में रहने के कर्तव्य हमें क्या होंगे पता !
संविधान में दिए अधिकार भी मालूम हैं क्या ?
फिर किसको देते हो किसका वास्ता ?
कैसा वास्ता ? मेरे भाई कैसा वास्ता ?
बंद करो ऊँची आवाज़ में चिल्लाना !
कुछ नहीं तो नागरिकता का ही पाठ पढ़ो !
खुद समझो और समझने में मदद करो !
केवल नारों से मत कृतार्थ करो जन मानस को !
अपने सिद्धांतों को खंगाल अब अमल करो !
नीचे उतरो मंच से, आसन छोड़ो और श्रम करो !
नेता को अपशब्द कह छाती मत ठोंको !
नेता हम जैसा है ! हमारे बीच से ही आता है ।
वह देश भक्त ना रहे तो अपदस्थ करो !
पर बाहर तो निकलो बिल से और वोट करो !
अफ़सर और नेता को समझाने से पहले
ख़ुद तो पहले ज़िम्मेदारी अपनी समझो !
जम कर आलोचना करो यदि उचित हो !
पर काम करो खुद भी और सबको करने दो !
शनिवार, 27 अप्रैल 2019
कितना नीला और गहरा
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