मन के अंधियारे
दूर भगाओ ।
दीप जलाओ ।
देव जागे,
तुम भी जागो !
अपने भीतर झाँको !
खो बैठे जो
उसे ढूँढ कर लाओ !
घुप्प अंधेरा हो तो
ख़ुद मशाल बन जाओ !
जग में उजियारा लाओ !
जागो, जागो, दीप जलाओ !
अथवा स्वयं दीप बन जाओ!
रविवार, 2 नवंबर 2025
जागो
शनिवार, 18 अक्टूबर 2025
सफ़ाई के बहाने
दीपावली से पहले
धुंआधार सफ़ाई में
कई भूले-बिसरे
स्मृति चिन्ह मिले ।
मुस्कुराते हुए झाँकते
सामान के बीच से ।
चंदा बादल हटा के
चुपके से देखे जैसे।
जब सारा दिन बीते
घर झाङते-बुहारते,
सहसा मिल जाए
बीते दिनों से आके
कोई पीठ थपथपाए ..
और कान पकङ के
बुलवाए सारे पहाङे !
गणित के आंकङे
जब-तब बदलते रहे,
पर उन्हें हल करने के
तरीके काम बहुत आए ।
बक्स में सबसे नीचे मिले
सवाल हल किए हुए ।
सारे अध्यापक याद आए।
किसी न किसी मोङ पे
सीखे हुए पाठ सामने आए ।
जोङे हुए पेन, रबर, सिक्के,
फ़ोटो जो धुंधले हो चुके।
मुसे हुए दुपट्टे गठजोङे के ।
बच्चों के सबसे पहले खिलौने ।
ऑटोग्राफ़ से भरे कॉपी के पन्ने ..
हस्तलिखित चिट्ठियों के पुलिंदे ।
गए ज़माने के बेशुमार किस्से
द्वार अवचेतन के खटखटाने लगे ।
त्यौहार की तैयारी को फ़िजूल कहें
वो लोग मनोविज्ञान कहाँ समझे ?
जब तक घर और मन के अछूते कोने
स्वच्छ न होंगे, देव विराजेंगे कैसे ?
पुराने विदा न किए तो नये आएंगे कैसे ?
संभवत: दर्पण की धूल साफ़ करते-करते
अपना ही अक्स साफ़ नज़र आने लगे,
रिश्तों को धूप दिखाने का मन हो आए !
इसी बहाने ख़ुद से भी मुलाक़ात हो जाए !
सोमवार, 13 अक्टूबर 2025
पावन पदचिन्ह
घर-घर के द्वार पर
मंदिर के निकट
अल्पना में अंकित
शुभ श्री चरण ..
माँ लक्ष्मी के माथे पर
दमकता पूर्ण चंद्र
नील नभ के ताल मध्य
जैसे खिला हो कमल !
अमावस और पूनम
सृष्टि का क्रम अनवरत,
नयनों में भर लेना मन
स्निग्ध चाँदनी का पीयूष।
निशा के चंद्र बनो मेरे मन
ऐसे कि उजियारी हो रैन ,
वंशी सुन हो जाए मगन,
शीतल बयार बन.. पाओ चैन ।
अंतर्दृष्टि से रस-रास अवलोकन ,
पथ प्रकाशित करें पावन पदचिन्ह ।