सोमवार, 11 जुलाई 2022
बरस रहा है पानी
रात भर बरसा है
मूसलाधार पानी ।
बादलों के मन की
किसी ने न जानी ।
और इधर धरा पर
देखो दूर एक पंछी
जल प्रपात समझ
सबसे ऊंची जगह
ढूंढ ध्यानावस्थित
बैठा है अविचल ।
भीग रहा है निरंतर
सोख रहा है जल
शीतल अविरल ।
संभवतः मौन धर
सुने जा रहा है
बादलों की व्यथा ।
बरस रहा है पानी ।
वर्षा का पानी
लाया ॠतु धानी ।
धरती कितनी तरसी
फिर बरसा पानी
तरलता हुई व्याप्त ।
बारिश की रागिनी
बूँदों की अठखेली
थिरक रही बावली
धिनक धिन-धिन ।
सृष्टि हुई ओझल
बूँदों की तरल झालर
बन गई मानो चूनर ।
धुले समस्त आडंबर ।
स्वच्छ हुआ अंतर्मन ।
अब भी लगातार
वही मूसलाधार
बरस रहा है पानी ।
बहा ले जाएगा
मन की सारी ग्लानि ।
फिर से शुरू कहानी ।
इस बार न डूबेगी
कागज़ की नाव हमारी ।
अंतर मार्जन कर ढुलका दी
बादल ने अपने कहानी ।
बूँदों के बाँध सहस्र नूपुर
घनश्याम कर रहे मयूर नृत्य
धाराप्रवाह बज रहा मृदंग
हर्षित हरित मन उपवन ।
जलमग्न धरा ध्यान मग्न
बूँद-बूँद जल आत्मसात
बिंदु-बिंदु सोख रही मिट्टी ।
अब भी बरस रहा है पानी ।
शुक्रवार, 1 जुलाई 2022
अपना हाथ जगन्नाथ
रात को जब सोने लगो
दिन भर के सपनों को
कंधों से उतार कर
ताक पर मत धर देना ।
सपनों को समेट कर
हौले से धूल झाड़ कर
अच्छी तरह तहा कर
हथेली की रेखाओं के बीच
सहेज कर रख देना ।
सुबह जब उठो
बंधी मुट्ठी जब खोलो
सबसे पहले ध्यान करो ..
तुम्हारी हथेली में ही है
लक्ष्मी सरस्वती और गोविंद का वास ।
अपने प्रयत्न से
पानी है तुम्हें
समृद्धि और विद्या ।
प्रयास करो, स्मरण रहे
तुम्हारे गोविंद हैं आधार ।
स्वप्नों की परतें खोलो
परत दर परत समझो
स्वप्न का शुभ संकेत ।
अंतर्मन तब तक मथो
जब तक सार ना पा जाओ ।
फिर उठो और जतन करो ।
एकनिष्ठ कर्म ही जीवन का सार
और भक्त के गोविंद हैं आधार ।
सत्यनिष्ठ के गोविंद हैं आधार
स्वयं सिद्ध करो काज
स्वप्न करो साकार
गोविन्द हैं आधार
और अपना हाथ जगन्नाथ
सोमवार, 20 जून 2022
दिनचर्या दिवाकर की
दिन भर तप कर सूरज जब
सांझ को ढल जाता है,
तारों भरा आकाश का आंचल
थपकी देकर सुलाता है ।
कभी-कभी चंद्रमा भी आकर
चांदनी रात ओढाता है,
और पवन का झोंका थम कर
मीठी लोरी सुनाता है ।
सप्त ऋषि दल तपोबल बट कर
पृथ्वी के दीप बालता है,
ध्रुव तारा सजग ध्रुव पद पर अटल
भूले को राह दिखाता है ।
भोर की वेला में जब सूरज रथ पर
पुनः क्षितिज पर आता है,
सृष्टि के स्वर जगा छलका रंग सहस्र
जग आलोकित करता है ।
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