लोकल ट्रेन की
पटरियों के किनारे
नाले पर बसी बस्ती ..
बस्ती के घर
बेपर्दा हैं .
झोंपड़पट्टी के घर
दड़बे जैसे ,
निहायत ही ज़रूरती
सामान से भरे .
फ़र्श साफ़-सुथरे ,
आले में
बर्तन चमकते हुए ,
और टीन के डब्बों में
पौधे खिले हुए ..
अपनी अस्मिता का
दावा ठोकते हुए ..
एक चुनौती हैं -
मुफ़लिसी से पैदा हुई
मायूसी के लिए .
सबूत हैं -
जीवन की उर्वरता का .
प्रमाण हैं -
इस बात का कि
जीने और खिलने की निष्ठा
शुद्ध आबोहवा की भी
मोहताज नहीं .
जड़ पकड़ने भर को
बस मुट्ठी भर मिट्टी चाहिए .
टीन के डिब्बों में
रत्न से जड़े हैं ,
छोटे - छोटे ये पौधे
जिद्दी बड़े हैं .
डट कर
जी रहे हैं .