कन्हैया की
कालीदह लीला,
जब जब देखी
अंतर में मुखर हुई
यही प्रार्थना ..
हे कृष्ण कन्हैया !
जब-जब मेरे मन में
अनुचित भावों का
नाग कालिया,
फन उठा के,
मेरे विवेक को ललकारे,
तुम इसी तरह आ जाना
दर्प सर्प को वश में करना ।
और नाग नथैया
ऐसा नृत्य करना ..
अंतर झकझोर देना,
ऐसी बांसुरी बजाना ..
बिखरे सुर जोड़ देना,
सम पर लाकर भले छोड़ देना .
दमन हो अहंकार के विष का,
ऐसा आत्मबल और भक्ति देना ।
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लीला चित्रण आभार सहित - श्री अनमोल माथुर
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