बुधवार, 7 मई 2025

अनसुना राग

 

ऐसे ही किसी रोज़ 

सारी बत्तियाँ बुझा दो,

चुपचाप सुनो..

मौन बहुत बोलता है,

पर करता नहीं शोर ।

बिना देखे करो बात

तो वो सुनाई देता है,

जो रोशनी में अक्सर 

नहीं आता नज़र ।

शायद अंधेरे में हम

आपस में नहीं रहते

उतने सतर्क ..

संभवतः यह सोचकर 

हो जाते हैं निश्चिंत 

कि कोई देख नहीं रहा ।

अरसे से छूटी हुई 

झिंगुर की आवाज़, 

पवन की सरसराहट, 

पानी का जलतरंग,

दूर कहीं किसी के 

गाने का मधुर स्वर ।

और फिर अपने ही

मन की सरगम ।

गाय का रंभाना,

कुत्तों का भौंकना,

दरवाज़ों के बंद होने

और खुलने की आवाज़ 

दिलाती है स्मरण,

हमारे आसपास 

एक दुनिया बसती है

अपने सुख-दुख के साथ ।

समय की पदचाप 

सुनाई देती है साफ़-साफ़।

दस्तक देते-देते कोई कब

लौट गया हताश होकर,

सब सुनाई देता है स्पष्ट।

अब भी सुन सकता है ह्रदय 

स्पंदन अभी भी है शेष,

जान कर जागती है फिर आस

मानो जीवन का नव प्रभात!

कभी-कभी इसलिए 

होता है अच्छा कुछ क्षण

बोझ उतार कर बैठना, 

बत्तियाँ बुझा कर सुनना

अनसुना राग अनुभूति का ।


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शुक्रवार 09 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. Bahut hi sunder rachna!!!! Maun sach mein kitna kuchh sunaa paata hai..

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