कुछ फीका
कुछ हकबकाया सा
मुँह लटकाए
बङी उहापोह में
सकुचाता सा
निकला चाँद ।
आंखों में लाल डोरे
धुंआ- धुंआ रात में
हैरान देख हर जगह
ड्योढ़ी,छत,झरोखों में
लिए पूजा का थाल
निर्जल व्रत-उपवासी
माँ ओढ़े ओढ़नी
लगा कर टकटकी
करती इंतज़ार..
कब आएगा चाँद ..
धन्य इस माँ की निष्ठा
और व्रत संकल्प !
बच्चे रहें सलामत..
इस एक आस में
सहती हैं कितना कष्ट !
बच्चों तुम भी ज़रा
कुछ कष्ट उठाओ !
मटमैले चाँद को
तनिक चमकाओ !
हवा में घुले ज़हर को
कम कर के दिखाओ!
उजला-सा चाँद बताशा
माँ के लिए उगाओ !
चाँद को तनिक हँसाओ !
मुँह मीठा करवाओ !
माँ को शीश नवाओ !
सुंदर..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद। नमस्ते।
हटाएंसही कहा इतने प्रदूषण में चाँद का चाँद सा चेहरा मटमैला हो रहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब सृजन सुन्दर सार्थक संदेश के साथ....
वाह!!!
नमस्ते, सुधा जी। मटमैले चाँद की किसी ने कल्पना ना की होगी, पर अब सच हो गया है। अपने-आप को याद दिलाना बहुत ज़रूरी है कि देर ना हो जाए। आपकी सहृदय सराहना के लिए आत्मीय आभार।
हटाएंबहुत सुंदर msg.दिया है 👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंबात आप तक पहुँची, इस बात की खुशी है। धन्यवाद।
हटाएंमाँ जाने क्या-क्या उपक्रम करती है अपनी संतान की खातिर... सकट चौथ पर लिखी बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २१ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
क्षमाप्रार्थी हूँ, अस्वस्थता के कारण उत्तर देने में बहुत विलंब हो गया। रचना को शामिल करने और शीर्षक चुनने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद, ओंकार जी।
हटाएंवाह! सुन्दर और सटीक...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, शुभा !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जोशी जी।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद, अनीता जी। नमस्ते।
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