रविवार, 19 जनवरी 2025

चाँद क्यों लागे फीका ?

 

कुछ फीका

कुछ हकबकाया सा

मुँह लटकाए 

बङी उहापोह में

सकुचाता सा

निकला चाँद ।


आंखों में लाल डोरे

धुंआ- धुंआ रात में

हैरान देख हर जगह

ड्योढ़ी,छत,झरोखों में

लिए पूजा का थाल

निर्जल व्रत-उपवासी 

माँ ओढ़े ओढ़नी 

लगा कर टकटकी

करती इंतज़ार..

कब आएगा चाँद ..


धन्य इस माँ की निष्ठा

और व्रत संकल्प  !

बच्चे रहें सलामत..

इस एक आस में 

सहती हैं कितना कष्ट !


बच्चों तुम भी ज़रा 

कुछ कष्ट उठाओ !

मटमैले चाँद को

तनिक चमकाओ !

हवा में घुले ज़हर को

कम कर के दिखाओ!

उजला-सा चाँद बताशा

माँ के लिए उगाओ !

चाँद को तनिक हँसाओ !

मुँह मीठा करवाओ !

माँ को शीश नवाओ !


16 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा इतने प्रदूषण में चाँद का चाँद सा चेहरा मटमैला हो रहा है।
    बहुत ही लाजवाब सृजन सुन्दर सार्थक संदेश के साथ....
    वाह!!!

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    1. नमस्ते, सुधा जी। मटमैले चाँद की किसी ने कल्पना ना की होगी, पर अब सच हो गया है। अपने-आप को याद दिलाना बहुत ज़रूरी है कि देर ना हो जाए। आपकी सहृदय सराहना के लिए आत्मीय आभार।

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  2. बहुत सुंदर msg.दिया है 👌🏻👌🏻

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    1. बात आप तक पहुँची, इस बात की खुशी है। धन्यवाद।

      हटाएं
  3. माँ जाने क्या-क्या उपक्रम करती है अपनी संतान की खातिर... सकट चौथ पर लिखी बहुत सुंदर रचना।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २१ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. क्षमाप्रार्थी हूँ, अस्वस्थता के कारण उत्तर देने में बहुत विलंब हो गया। रचना को शामिल करने और शीर्षक चुनने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

      हटाएं

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