बचपन याद आता है बहुत
जब जीवन था सहज-सरल ।
खेलते-कूदते, लङते-झगङते
पर छोङते नहीं थे कभी हाथ ।
कङी धूप में खेलना दिन-रात
या पानी छपछपाना बेहिसाब ।
और छोङना काग़ज की नाव
सवार कर कल्पना का संसार ।
पास थी दुनिया भर की दौलत
माचिस की डिबिया,पत्थर गोल,
कंचे, पंख, चवन्नी, डाक टिकट,
कलर, सुगंधित रबर, स्टिकर ।
खाते-खेलते,पङते बीमार,मगर
फिर भी हमेशा रहते थे बेफ़िकर ।
डाँट-फटकार, तकरार सब भूल
माँ की गोद में सोते बेसुध होकर ।
गुरुवार, 14 नवंबर 2024
बचपन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 16 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंचिंतामुक्त बचपन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।