रविवार, 13 अक्टूबर 2024

अल्पना



विदा की वेला भी 

अब आ गई माँ ।


दुष्टता का कर संहार, 

पीहर में करने विश्राम, 

अर्थात मनन.. ध्यान .. 

जगत जननी, जगद्धात्री माँ

पग फेरे को आईं थी घर 

रुप धर कन्या का ।


व्रतोपासना, उत्सव,

सृजन अभिराम ।

विधिवत घट स्थापना 

नव दुर्गा आराधन

कन्या पूजन, कथा 

जौ बोना, बढ़ते देखना ..

ह्रदय में उल्लास

तन में ऊर्जा अपार !

कल्पना की वंदनवार 

रंगों की छटा बलिहार ।

धूनीर नाच,शेंदूर खेला,

ढाक बाजे तो कोई 

कैसे ना नाचे सब बिसार !


जगत के व्यवहार..

सकल आडंबर त्याग

मुक्त भाव से होकर प्रसन्न 

करुँ जीवन को स्वीकार,

और दूँ एक नया आकार ।

जाते-जाते अपनी रुप रश्मि

मेरे प्राणों में भर दो माँ।


प्रतिमा तुम्हारी भले ही 

जल में हो विसर्जित, 

ज्योतिर्मय छवि तुम्हारी 

कर लूँ मैं आत्मसात,

जैसे मिट्टी सोख लेती  

वर्षा का जल अपरिमित ।  


तुम्हारे पुनरागमन तक,

जीवन का विषम और सम

रेखाओं में समेट परस्पर 

भवितव्य की भूमि पर 

उकेर सकूँ अनूठी अल्पना ,

ऐसा विवेक और यथोचित

संकल्प शक्ति दो माँ ।


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दशहरा साभार - श्री करन सिंह पति

अल्पना - अंतरजाल से आभार सहित




4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" गुरुवार 17 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. धन्यवाद, आदरणीया सखी। शरद पूर्णिमा उजियारी हो !

      हटाएं

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