बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

माँ


माँ आओ ! आओ माँ !

हुआ भोर का शंखनाद !

रश्मि रथ पर हो सवार

भव का तम हरने आओ !

दूर करो माँ यह अंधकार

जो लील रहा अस्तित्व मेरा !

सूझता नहीं मुझे पथ मेरा !

इस जग में है ही कौन मेरा

जिसको पुकार कर बुलाऊँ ?

अंतर का हाहाकार सुनाऊँ ?

अपनी कृपा दृष्टि का दीप जला

मुझे आगे का मार्ग दिखाओ ।

मेरे मन के महिषासुर बलवान 

दैन्य, दौर्बल्य, भय, संताप,

इन दुष्टों को मार भगाओ !

अपने नयनों के प्रखर तेज से

मुझमें साहस प्रज्ज्वलित करो माँ !

भावशून्यता के भंवर से उबारो !

जड़ तिमिर भेद मनोबल दो !

चरण धूलि तुम्हारी पा जाऊँ माँ !

ह्रदय आलोकित कर दे मेरा माँ

तुम्हारे पावन रूप की ज्योत्सना ।


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माँ की छवि अंतरजाल से साभार 

8 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की स्तुति मन को भावनाओं से भर गयी।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ०४ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. श्वेता जी, माँ का स्वरूप ही ढाँढ़स बँधाता है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.. गहन अनुभूतियों से प्रेरित इस अंक की भूमिका और रचनाओं के समकक्ष स्थान देने के लिए। शुभ नवरात्रि।

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  2. माँ के विभिन्न स्वरुपों की सुंदर प्रस्तुति. जय माता की

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    1. आपकी अनुभूति को नमन जो आपने अंतरव्यथा के परे माँ के विभिन्न स्वरूपों का दर्शन किया। शुभ नवरात्रि।

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  3. माँ आओ ! आओ माँ !
    हुआ भोर का शंखनाद !
    रश्मि रथ पर हो सवार
    भव का तम हरने आओ !
    हृदय में शीतलता भरते अद्भुत भाव.., भक्ति भाव से ओतप्रोत भावभीनी स्तुति ।अति सुन्दर संग्रहणीय सृजन नुपूरं जी ! सादर सस्नेह वन्दे !

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  4. आपकी सहृदय एवं संवेदनशील सराहना का हृदय तल से आभार। नवरात्रि शुभ हो। मंगल हो नवाचार।

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