जो काम करो लगन से करना,
और जीना एक वृक्ष समान ।
मिट्टी में अपनी जङ फैलाना ।
मिट्टी से सदा जुङे रहना ।
मज़बूत तना सह लेता हैमौसम के विषम उत्पात ।
मेरूदंड रहे सीधा रहना सावधान !
ताकी साध सको जीवन के झंझावात।
जब नव पल्लव कर दें आच्छादितडाल-डाल और खिलने लगें फूल,
नीङ बना कर बसने लगें पंछी सहज
और लगा रहे चिङियों का चहचहाना !
कोयल का कूकना, गिलहरी का दौङना !
तोता और मैना का सुर में सुर मिलाना ।
गौरैया का फुदकना, तितलियों का आना..
हरे-भरे संसार में अपने आश्रय देना ।
फल आएं तो परिवार में बाँट लेना ।ग्रीष्म,शीत, वर्षा, वसंत ऋतु का आनंद लेना।
और जब आए पतझङ मान सहित विदा करना ।
हरे-भरे दिनों में फल-फूल,ठंडी छाँव,प्राणवायु देना ।
सूख कर भी आता काम जिस तरह हर छोटा-बङा वृक्ष
तुम भी आजीवन करना ऐसे काम जो आएं सबके काम।
सुंदर, प्रेरणादायक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, ओंकार जी. "वृक्षन से मत ले, मन तू ..." सूरदास जी का पद बहुत सुन्दर और मार्मिक है. आपने शायद पढ़ा होगा..
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसविनय, धन्यवाद. यशोदा सखी, बहुत अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं.
हटाएंसविनय, धन्यवाद. यशोदा सखी, बहुत अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं.
हटाएंपेड़ के जैसा बनना होगा, तभी जगत यह अपना होगा
जवाब देंहटाएंक्या बात कही अनीता जी ! गागर में सागर ! धन्यवाद.
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जोशी जी. नमस्ते.
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आलोक जी. नमस्ते.
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