शुक्रवार, 10 मई 2024

अमलतास की आस


फहराया पीतांबर..

नील गगन के पथ पर

सूर्य रश्मि ले चली

बदली की गगरी

छलकाती स्वर्ण 

हुआ स्वर्णिम पर्व ।


स्वर्ण पत्र वृक्षों पर

झूमते प्रसन्न होकर,

झर रहे पुष्प पीत

अमलतास,सोनमोहर,

मार्ग हुआ आच्छादित 

जैसे पुरे मन की साध।


बिराजे ठाकुर आज,

सुगंधित सकल साज

चंदन पोशाक शोभित 

नैवेद्य,फूल,धूप निवेदित,

झंकृत ह्रदय के तार

अक्षय सेवा-सद्भाव।


पंछी करते कलरव

पवन बहे अति चंचल,

नदी हुई जलतरंग,

पीत पुष्प गुच्छ बिखर

लहर-लहर अविरल 

खे रहे जीवन की नाव


अमलतास के झूमर 

लुटा रहे मुक्त हस्त

स्वर्ण की सहस्र मोहर

बरसे उस की मेहर

भर-भर कर आंचल,

फहरा रहा पीतांबर।


******************************************************

चित्र साभार : श्री करण पति 

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. अमलतास की कुंज में, चंपा वरणी श्री राधा का कर पकड़ आनंद ले रहे होंगे ‘अमलपाणि’

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अमलतास कुंज की कल्पना ही इतनी सुन्दर है..अमलपाणी...धन्यवाद.
      हमारी स्मृति जुड़ी थी "वा पीत पट की फहरान ""

      हटाएं
  2. लहर-लहर अविरल 

    खे रहे जीवन की नाव।

    वाह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. फूल, नाव और तिनके ..बहते-बहते जाने कहाँ तक जाते. अविरल हो आनंद प्रवाह.

      हटाएं
  3. अमलतास की सुनहरी झूमर किसका मन नहीं मोहती, सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं

कुछ अपने मन की भी कहिए