संदर्भ बदलते ही
अर्थ बदल जाते हैं ।
बात करो मत
शाश्वत सत्य की !
एक ही क्षण में
मूल्य बदल जाते हैं ।
मूल्य होते हैं लचीले ..
किसी भी सांचे में
ढाल दिये जाते हैं ।
शुद्धता मापने के
पैमाने बदल जाते हैं ।
हांफती ज़िन्दगी की
जद्दोजहद में
हर चीज़ देखने के
ढंग बदल जाते हैं ।
साथ चलते-चलते
लोग बदल जाते हैं ।
नाम उसूलों के
वही रहते हैं ।
काम और दाम
बदल जाते हैं ।
आदमी की
अहमियत ही क्या है ?
पलक झपकते ही
संज्ञा से
सर्वनाम हो जाते हैं ।
धन्यवाद, शास्त्रीजी. नमस्ते.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने कि संदर्भ बदलते ही अर्थ बदल जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
बहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएंयथार्थ लिखा !
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