बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

रोज़ आता है डाकिया


जिज्जी आज अगर आप होतीं
तो सच्ची कितना हँसती..
राम जाने !
जब आपको हम बताते
आज डाक दिवस है ।
हँसी से लोटपोट हो कर
धौल जमा कर कहतीं ..
चिट्ठी क्या कोई एक दिन
लिखे जाने की चीज़ है !
आख़िर रोज़ आता है डाकिया
लादे बस्ता भर कर चिट्ठियां !
जैसे सूरज बेनागा उदय होता है ।
ठीक उसी तरह ट्रिन-ट्रिन करता
अक्सर सायकिल पर सवार
या पैदल घर-घर फेरी लगाता है,
रोज़ आता है डाकिया ।
उसे इस बात का भान है,
किसी को इंतज़ार है 
ज़रूरी चिट्ठी, मनी आर्डर का ।
किसी ज़माने में मेघदूत आते थे, 
संदेसा लाते जवाब पहुँचाते ।
आज का मेघदूत है डाकिया ।
कोई एक दिन लिखता है भला !
चिट्ठी तो भावावेग की बाढ़ है ।
कभी किसी की दरकार है ।
प्यार भरी मनुहार है,सरोकार है ।
अकलेपन का अचूक उपचार है ।
अनुपस्थित से परस्पर संवाद है ।
ये सब क्या एक दिन की बात है ?
वाह रे ज़माने ! अजब रिवाज़ है ।
रोज़ आता है डाकिया बाँटता हुआ
चिट्ठियों में उम्मीद की अशर्फ़ियां ।
अपने बस्ते में लादे अनगिनत कहानियाँ 
सूत्रधार बन कर रोज़ आता है डाकिया ।


16 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन अब तो चिट्ठियों का रिवाज़ भी खत्म हो गया ।
    सुंदर रचना ।

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    1. शुक्रिया, संगीता जी ।
      रिवाज़ ख़त्म हो गया पर चाह कभी गई नहीं ।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 13 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. यशोदा सखी, पाँच लिंकों में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।

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  3. डाक दिवस पर बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति नूपुरं जी,सादर नमन

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    1. कामिनी जी, धन्यवाद । चिट्ठियों में जो आत्मीयता होती है, उसकी पूर्ति डिजिटल पत्र कभी नहीं कर सकते ।

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  4. हमारी पीढ़ी डाकिया का इंतजार की है...

    सुन्दर रचना

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    1. जी, विभा जी । आज भी डाकिये को देख कर लगता है कि शायद इसके पास हमारी चिट्ठी हो । : )

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  5. वाह बहुत सुंदर चिट्ठियों का अपना अलग ही आनंद था आजकल तो वो आनंद ढूँढे से भी नहीं मिलता

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    1. बहुत दिनों में आना हुआ, अभिलाषा जी । अच्छा लगा । अब भी चिट्ठियां लिखी जाती हैं, सहेजी जाती हैं । अब भी रक्षाबंधन से पहले लंबी कतार में लोग खङे दिखाई देते हैं । बस नहीं है तो वो रिश्ता जो अपनेपन का था ।
      बहुत शुक्रिया ।

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  6. बहुत ही सुंदर सार्थक रचना ।चिट्ठी का मोह और अपनापन इस जन्म तो नही छूट सकता । अभी भी डाकिया आता है, पर जरूरी पत्रों को लेकर । पर आता है ।

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  7. आज भी चिठ्ठियों के लिए मन तरसता
    अप्रतिम रचना

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