महाकवि निराला ने
देखा था उसे
इलाहाबाद के पथ पर
वह तोङती थी पत्थर ।
आज मैंने जिसे देखा
क्या यही थी वह जिसे
देखा था महाकवि ने ?
आप रहे भाव दृष्टा
आपने पढ़ लिया
उलाहना आंखों का..
अथवा ..
मौन कटाक्ष था क्या?
था भी तो आपसे ज़्यादा
कौन समझ सकता था ?
ठंड में ठिठुरते
फुटपाथ पर सोते
विपन्न को अपना
ऊनी वस्त्र दे दिया था,
आपने उदार मना ।
उसका जता देना,
पुनः काम में जुट जाना ।
अपने हाथों और हथौङे से
गढ़ना अपना भवितव्य ।
स्वीकार कर पत्थर सा
कठोर जीवन अपना
और जीवट इतना
हथौङे से लगातार
करती वार
वह तोङती पत्थर ..
विषमताओं पर करती प्रहार ..
आप जान गए थे महामना ।
तो क्या कुछ भी नहीं बदला ?
पीठ पर बांध कर बच्चा
कङी धूप में तप कर
हाथ में हथौङा लेकर
अब तक वह स्वयंसिद्धा
तोङती है पत्थर ..
महाकवि निराला की संवेदना
लिख गई कविता
पिरो कर अनुभूति में
भाव सरिता ।
आज मैंने भी देखा,
वह तोङती थी पत्थर ।
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छायाचित्र इंटरनेट से साभार
कुछ नहीं बदला। दूसरों के सपने साकार करने वाला मजदूर आज भी वैसा ही है।
जवाब देंहटाएं'वह तोड़ती पत्थर' मेरी पसंदीदा कविताओं में से एक है।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 09 मई 2022 को 'तो क्या कुछ भी नहीं बदला ?' (चर्चा अंक 4424) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंतोड़ती पत्थर तो हर जगह दिखती हैं .... बेहतरीन रचना .
जवाब देंहटाएंउसका जता देना,
जवाब देंहटाएंपुनः काम में जुट जाना ।
अपने हाथों और हथौङे से
गढ़ना अपना भवितव्य ।
स्वीकार कर पत्थर सा कठोर
जीवन अपना और जीवट इतना
हथौङे से लगातार करती वार
वह तोङती पत्थर ..
विषमताओं पर करती प्रहार ..
आप जान गए थे महामना
निराला की अमर रचना की सुंदर काव्यात्मक समीक्षा के लिए बधाई। सचमुच! तारीखें बदलीं,साल बदले, कई दशक बीत गए मगर समाज और अर्थतंत्र के एक लगभग स्थाई हो चुके कटु सत्य को अपने में समेटता वह चित्र ज्यों का त्यों है। 👍👍👍🙏💐
जवाब देंहटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंआज भी गरीबी पत्थर तोड़ती है जीने के लिए संघर्ष करती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
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