जब चल ही पङे हैं,
तो पहुँच ही जाएंगे ।
जहाँ पहुँचना चाहते थे वहाँ ,
या रास्ता जहाँ ले चले वहाँ ।
रास्ता भूल भी गए तो क्या ?
एक नया रास्ता बनता जाएगा,
अगर चलने वाला चलता जाएगा ।
चलते-चलते ही तो बन जाते हैं रास्ते,
भले ही ना बने हों हमारे वास्ते ।
रास्तों से निकलते हैं और नए रास्ते,
हथेली की रेखाओं से मिलते-जुलते ।
चलते-चलते आसान होती जाती हैं राहें,
सुलझाते-सुलझाते खुलने लगती हैं गिरहें ।
चित्र साभार : श्री अनमोल माथुर
मेरे दिल की बात लिख दी ।
जवाब देंहटाएंशायद तुम्हारी ही कलम थी !
हटाएंधन्यवाद नम्रता.
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसविनय आभार.
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-१२ -२०२१) को
'हताश मन की व्यथा'(चर्चा अंक-४२६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद, अनीता जी । व्यथा की कथा में सम्मिलित होना सौभाग्य है अपना ।
हटाएंरास्ता भूल भी गए तो क्या ?
जवाब देंहटाएंएक नया रास्ता बनता जाएगा,
अगर चलने वाला चलता जाएगा ।
वाह!!
क्या बात कही है...
बहुत ही लाजवाब सृजन..
मनीषा जी, सादर आभार ।
हटाएंनमस्ते ।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, ज्योति जी । नमस्ते ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसविनय आभारी हूँ,भारती जी । नमस्ते पर सस्नेह स्वागत है आपका ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद,ओंकार जी ।
हटाएंबहुत ही उम्दा सृजन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, कायल जी. नमस्ते पर आपका सहर्ष स्वागत है.
हटाएंएक नया रास्ता बनता जाएगा,
जवाब देंहटाएंअगर चलने वाला चलता जाएगा ।
वाह
बहुत ही लाजवाब सृजन..