कभी-कभी
कोई वजह नहीं होती
पास हमारे,
आज का पुल
पार कर के,
कल का अभिनंदन
करने की ।
ज़िन्दगी बन जाती
मशक्कत
बेवजह की ।
ऐन वक्त पर लेकिन
आपत्ति जता देती,
एक नटखट कली
जो खिलने को थी ।
यह बोली कली
जाने की वेला नहीं,
निविङ निशि ।
टोक लग जाती ।
फूल रही जूही
सुगंध भीनी-भीनी,
बिछी हुई चाँदनी,
धीर समीर बह रही ।
मौन रजनी,
ध्यानावस्थित
सकल धरिणी ।
कोई तो वजह होगी,
सुबह तक रूकने की ।
हाँ, है तो सही
एक इच्छा छोटी सी ..
देखने की कैसे बनी
फूल छोटी सी कली ।
भोर हो गई ।
मंद-मंद पवन चली ।
जाग उठी समस्त सृष्टि
गली-गली चहक उठी ।
नरम-नरम धूप खिली ।
और खिली कली ।
एक फूल का
खिलना भी,
हो सकती है वजह
जीने की ।
आज का पुल पार कर के कल का अभिनंदन करने की वजह अनेक हैं, एक छोटी कली ने कल का रास्ता दिखा दिया तो सोचिए, इसके जैसी अनगिनत कलियों से गूथा हुआ गजरा, जो कल लोकल ट्रेन में फिर महकेगा।
जवाब देंहटाएंवाह , बस कोई भी छोटी सी वजह लेकिन हो .... खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंजी हाँ । वीराने में खिला हुआ केवल एक फूल भी निराश मन को आशा का संबल दे सकता है । बहुत अच्छी कविता है यह । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावों भरी अभिव्यक्ति,एक नन्ही कली को भी कितनी मशक्कत के बाद खिलता हुआ जीवन मिला,वह नन्ही कली तो प्रेरणा बनेगी ही,सुंदर सृजन के लिए सादर शुभकामनाएं ।
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