रविवार, 23 अगस्त 2020

ये भी नहीं


फूल नहीं,
फूल की खुशबू नहीं ।
आकाश का छलकता
गहरा नीला रंग नहीं ।
बादलों के पंख नहीं ।
चंद्र और सूर्य नहीं ।
बारिश में भीगी
मिट्टी की सुगंध नहीं ।
नदी का भंवर नहीं ।
कल कल बहता 
जल भी नहीं ।
नैया नहीं, खेवैया नहीं ।
आँगन के कुँए का 
मीठा पानी भी नहीं ।
रूप की लुनाई नहीं ।
शिशु की किलकारी नहीं ।
बगीचे की फुलवारी नहीं ।
धनुष पर चढ़ी प्रत्यंचा नहीं ।
यौवन का मुक्त हास नहीं ।
वय का विलाप नहीं ।
पश्चाताप नहीं ।
प्रकृति का श्रृंगार नहीं ।
पक्षी का गान नहीं ।
ज्ञान की गरिमा नहीं ।
प्रारब्ध का अट्टहास नहीं ।
बचपन की मधुर स्मृति नहीं ।
शब्दों का द्वंद नहीं ।
नवरस अलंकार नहीं ।

ये सब नहीं ।
इन सबके होने की
गहन अनुभूति ही 
कविता है ।


16 टिप्‍पणियां:

  1. Raises many questions. क्या वो कलाकार है जो बिना महसूस किये हुए भी अनुभूति करा दे, या वो को चख के चखाए?
    सुंदर कविता।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद, अनमोल सा.
      ये हमेशा का सवाल है...सौन्दर्य देखने वाले की नज़र में होता है, या स्वयं देखी जा रही सुन्दरता में ? विचार करें तो यदि अनुभूति सुन्दर नहीं, तो रचना सुन्दर कैसे होगी ? और ये भी कि देखते सब हैं, पर सौन्दर्य की अनुभूति सभी को नहीं होती.

      हटाएं
  2. बंद कमरों की छंद पंक्ति जो छुवा दे प्रकृति का आँचल। यह अनुभूति कि यादें ही हैं जो करा दे कविताओं को प्रत्यक्ष।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया, श्रीनिधि. जो अनुभूति जगा दे, वही सुन्दर है. यही कहा ना ?

      हटाएं
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कामिनी जी, बहुत-बहुत धन्यवाद.
      उत्तर देने में विलंब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. आपका मार्गदर्शन मिलता रहे,शास्त्रीजी. अनंत आभार.

      हटाएं
  5. इन सबके होने से ही तो रचना जन्म लेती है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सोलह आने सही बात.दिलीप जी, पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद.
      इन सबके होने से ही रचना सुन्दर है.
      पर इनका सुन्दर होना अधिकाँश अनदेखा कर बैठते हैं.
      जिन्हें अनुभूति होती है, वही अभिव्यक्त कर पाते हैं.

      देख कर भी सब देख नहीं पाते.
      बारिश में भीग कर भी रीते ही रह जाते.

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. नमस्ते अनुराधा जी. बहुत दिनों में मिलना हुआ.
      बहुत-बहुत शुक्रिया ! जो आपने समय निकाल कर पढ़ा.

      हटाएं

कुछ अपने मन की भी कहिए