फूल नहीं,
फूल की खुशबू नहीं ।
आकाश का छलकता
गहरा नीला रंग नहीं ।
बादलों के पंख नहीं ।
चंद्र और सूर्य नहीं ।
बारिश में भीगी
मिट्टी की सुगंध नहीं ।
नदी का भंवर नहीं ।
कल कल बहता
जल भी नहीं ।
नैया नहीं, खेवैया नहीं ।
आँगन के कुँए का
मीठा पानी भी नहीं ।
रूप की लुनाई नहीं ।
शिशु की किलकारी नहीं ।
बगीचे की फुलवारी नहीं ।
धनुष पर चढ़ी प्रत्यंचा नहीं ।
यौवन का मुक्त हास नहीं ।
वय का विलाप नहीं ।
पश्चाताप नहीं ।
प्रकृति का श्रृंगार नहीं ।
पक्षी का गान नहीं ।
ज्ञान की गरिमा नहीं ।
प्रारब्ध का अट्टहास नहीं ।
बचपन की मधुर स्मृति नहीं ।
शब्दों का द्वंद नहीं ।
नवरस अलंकार नहीं ।
ये सब नहीं ।
इन सबके होने की
गहन अनुभूति ही
कविता है ।
Raises many questions. क्या वो कलाकार है जो बिना महसूस किये हुए भी अनुभूति करा दे, या वो को चख के चखाए?
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता।
धन्यवाद, अनमोल सा.
हटाएंये हमेशा का सवाल है...सौन्दर्य देखने वाले की नज़र में होता है, या स्वयं देखी जा रही सुन्दरता में ? विचार करें तो यदि अनुभूति सुन्दर नहीं, तो रचना सुन्दर कैसे होगी ? और ये भी कि देखते सब हैं, पर सौन्दर्य की अनुभूति सभी को नहीं होती.
वाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, जोशी जी.
हटाएंबंद कमरों की छंद पंक्ति जो छुवा दे प्रकृति का आँचल। यह अनुभूति कि यादें ही हैं जो करा दे कविताओं को प्रत्यक्ष।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, श्रीनिधि. जो अनुभूति जगा दे, वही सुन्दर है. यही कहा ना ?
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी, बहुत-बहुत धन्यवाद.
हटाएंउत्तर देने में विलंब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
सार्थक और सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंआपका मार्गदर्शन मिलता रहे,शास्त्रीजी. अनंत आभार.
हटाएंइन सबके होने से ही तो रचना जन्म लेती है।
जवाब देंहटाएंसोलह आने सही बात.दिलीप जी, पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद.
हटाएंइन सबके होने से ही रचना सुन्दर है.
पर इनका सुन्दर होना अधिकाँश अनदेखा कर बैठते हैं.
जिन्हें अनुभूति होती है, वही अभिव्यक्त कर पाते हैं.
देख कर भी सब देख नहीं पाते.
बारिश में भीग कर भी रीते ही रह जाते.
वाह बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंनमस्ते अनुराधा जी. बहुत दिनों में मिलना हुआ.
हटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया ! जो आपने समय निकाल कर पढ़ा.
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, ओंकारजी.
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