शुक्रवार, 26 जून 2020

रिश्तों का मर्म

रिश्ते 
रेत के महल होते हैं ।
भव्य सुंदर मनोरम
पर एक लहर आए
तो ढह जाते हैं ।
उंगलियों के बीच से
रेत की तरह 
फिसल जाते हैं,
देखते-देखते ।
जतन ना करने से
और कई बार
बिना किसी वजह
रीत जाते हैं ।

संबंध
छीज जाते हैं ।
जैसे छलनी में से
जल ।
अश्रु जल से
बह जाते हैं,
जब बांध
टूट जाता है ।

भवितव्य
पता किसे ?
पर रिश्ते
बनते ही हैं
भले टूट जाएं
कालांतर में ।
बदल जाएं
अनायास ।

स्वभावगत 
क्रम टूटता नहीं पर
प्रकृति का ।
कण-कण जुड़ा है,
एक दूसरे से ।
रिश्ते ना जुड़ें
ये हो सकता नहीं ।
रिश्तों के बिना
आदमी जी सकता नहीं ।

तो क्या हुआ ?
रिश्ते बनाना-निभाना
कष्टप्रद हो या सुखद
व्यर्थ नहीं जाता 
रिश्ते जीना ।

हर रिश्ता
कोई बीज बो जाता है ।
फले ना फले बीज
वृक्ष बन ही जाता है ।
वृक्ष की सघन छाँव में
संभव है एक दिन
कोई थक कर बैठे
और समझ पाए
लेन-देन से परे
रिश्ते-नातों का मर्म ।




12 टिप्‍पणियां:

  1. हर रिश्ता
    कोई बीज बो जाता है ।
    फले ना फले बीज
    वृक्ष बन ही जाता है । बहुत सुंदर!!!

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  2. सुंदर। एक बात याद आई, जब लहर से बालू का घर टूट जाता है, तो बालक निराश होकर एक पल को बैठ जाता है। और अगले ही मिनट अपने खिलौने से वापस वैसा ही महल बना लेता है। Maybe महल का टूट के बनना ही लिखा हो

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    उत्तर
    1. बालू और बीज में यही तो फ़र्क है ।
      शुक्रिया सा ।

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  3. उत्तर
    1. धन्यवाद, शास्त्री जी ।
      मार्गदर्शन करते रहिएगा ।

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  4. Iss duniya k swaarth bhare sangharsh mein shayad rishte bane hi tootne k liye..

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    उत्तर
    1. फिर भी आदमी तो वो है, जो रिश्ते जोङ कर ही माने ।

      हटाएं
  5. हर रिश्ता
    कोई बीज बो जाता है ।
    फले ना फले बीज
    वृक्ष बन ही जाता है ।
    वृक्ष की सघन छाँव में
    संभव है एक दिन
    कोई थक कर बैठे
    और समझ पाए
    लेन-देन से परे
    रिश्ते-नातों का मर्म ।
    बहुत खूब लाख टके की बात नुपुरम जी | सुंदर रचना !!!

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  6. लाख टके की बात , याद रहे तो बात है ।
    शुक्रिया, रेणु जी ।

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