गुरुवार, 11 जून 2020

अंतर्कथा

तिरेपन तुरपनों के बाद
बार-बार उधड़ी सिलाइयों की,
तिरेपन पैबंद जोड़ने के बाद,
रंग कुछ फीके पड़ने के बाद,
जैसा भी है कथा ताना-बाना,
कुल मिला कर बुरा नहीं रहा,
हिसाब-किताब लेन-देन का,
बही खाते में जो दर्ज हुआ ।
जुलाहे ने जतन से जो बुना था ।
साधारण पर कच्चा नहीं था धागा ।
धागों और बुनावट की सुघड़ कला
सीखते-समझते समय सरस बीता
तिरेपन धागों की तिहत्तर तुकबंदियां
तमाम किस्सा बिल्कुल वैसा ही था
जैसा और जितना हमसे बन पड़ा ।
अब आगे बढ़ती है धागों की अंतर्कथा ।



9 टिप्‍पणियां:

  1. अनन्त शुभकामनाएँ
    ये आपकी सद्य प्रसवित रचना है
    बेहतरीन..
    सादर..

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    1. यशोदाजी, अनंत आभार ।
      विलंब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-0६-२०२०) को 'पत्थरों का स्रोत'(चर्चा अंक-३७३१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  3. तिरेपन तुरपनों के बाद
    बार-बार उधड़ी सिलाइयों की,
    तिरेपन पैबंद जोड़ने के बाद,
    रंग कुछ फीके पड़ने के बाद,
    जैसा भी है कथा ताना-बाना,
    कुल मिला कर बुरा नहीं रहा,
    ----
    क्यों बुरा रहेगा तिरेपन से तिरानवेवाँ तुरपन के धागे स्वस्थ और चटख रंगों से खिले रहे यही कामना करती हूँ।
    बहुत सुंदर रचना।

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  4. धागों की अन्तर्कथा।
    बहुत सुन्दर और सार्थक।

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  5. अंतर्कथा में रिश्तों की बुनावट के ताने- बाने बहुत कुछ कहते हैं | भावपूर्ण रचना !!!!

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