तिरेपन तुरपनों के बाद
बार-बार उधड़ी सिलाइयों की,
तिरेपन पैबंद जोड़ने के बाद,
रंग कुछ फीके पड़ने के बाद,
जैसा भी है कथा ताना-बाना,
कुल मिला कर बुरा नहीं रहा,
हिसाब-किताब लेन-देन का,
बही खाते में जो दर्ज हुआ ।
जुलाहे ने जतन से जो बुना था ।
साधारण पर कच्चा नहीं था धागा ।
धागों और बुनावट की सुघड़ कला
सीखते-समझते समय सरस बीता
तिरेपन धागों की तिहत्तर तुकबंदियां
तमाम किस्सा बिल्कुल वैसा ही था
जैसा और जितना हमसे बन पड़ा ।
अब आगे बढ़ती है धागों की अंतर्कथा ।
अनन्त शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंये आपकी सद्य प्रसवित रचना है
बेहतरीन..
सादर..
यशोदाजी, अनंत आभार ।
हटाएंविलंब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-0६-२०२०) को 'पत्थरों का स्रोत'(चर्चा अंक-३७३१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
तिरेपन तुरपनों के बाद
जवाब देंहटाएंबार-बार उधड़ी सिलाइयों की,
तिरेपन पैबंद जोड़ने के बाद,
रंग कुछ फीके पड़ने के बाद,
जैसा भी है कथा ताना-बाना,
कुल मिला कर बुरा नहीं रहा,
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क्यों बुरा रहेगा तिरेपन से तिरानवेवाँ तुरपन के धागे स्वस्थ और चटख रंगों से खिले रहे यही कामना करती हूँ।
बहुत सुंदर रचना।
धागों की अन्तर्कथा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक।
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंअंतर्कथा में रिश्तों की बुनावट के ताने- बाने बहुत कुछ कहते हैं | भावपूर्ण रचना !!!!
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