ध्वस्त मनःस्थिति
कोई राह सूझती न थी
सन्नाटा पसरा था
बाहर और भीतर
शब्द-शून्य क्षण था
पत्ता भी हिलता न था
अव्यक्त असह्य पीड़ा का
बादल घुमड़ रहा था ।
इतने में सहसा
दूर कहीं टिमटिमाया
जुगनू सा
आरती का दिया
और सुनाई दी
घंटी की धीमी ध्वनि ।
भीतर कुछ पिघल गया
एक आंसू ढुलक गया ।
कोई तार जुड़ गया ।
कोई ना था पर लगा
कोई सुन रहा था
समझ रहा था
साथ था सदा।
बहुत सुन्दर और मार्मिक
जवाब देंहटाएंआपका आभार शास्त्रीजी ।
हटाएंअत्यन्त मामिक👌🌹🌹🌹💕
हटाएंआपने भी अनुभव किया होगा ।
हटाएंधन्यवाद अपरिचित ।
हृदयस्पर्शी सृजन .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, मीना जी ।
हटाएंउम्मीद पे दुनिया क़ायम है ।
आर्तिशमन आरती :)
जवाब देंहटाएंThank you, Shrinidhi.
हटाएंFaith can move mountains.... as they say.
कोई सुन रहा था
जवाब देंहटाएंसमझ रहा था
साथ था सदा।
बिल्कुल सही कोई तो है जो सदा साथ था और है।
✅✅👍🏻👍🏻💐💐
समझने के लिए बेहद शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसोच का ही सारा फेर है .