वाह भई वाह !
क्या खूब !
क्या कहने !
छा गए !
बहुत कामयाब रहा !
कवि सम्मेलन तुम्हारा !
लोगों ने बहुत सराहा !
खूब तालियां बजी !
चहुं दिक चर्चा हुई !
पर एक बात बताओ भई !
कब से माथे को मथ रही !
तुमने बात बड़ी अच्छी कही !
पर आचरण में दिखी नहीं !
कविता अगर जी नहीं
तो क्या खाक लिखी !
सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्रीजी.
हटाएंसही कहा "कविता यदि जी नहीं तो खाक कही"🌹🌹👌
हटाएंआभार अनाम पाठक ।
हटाएंबात समझने के लिए ।
वाह !! बहुत खूब !! बहुत सुन्दर सृजन नुपुरं जी ।
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया,मीनाजी.
हटाएंकविताओं को जीना होता है ... पर हर कल्पना को जीना आसान नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंजी. आपने सही कहा.
हटाएंअपितु यहाँ कविता से अभिप्राय था..मर्म.
कल्पना की बात और है.
: ) अपनी बात कहने के लिए आपका असीम आभार.
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंStrong and crisp.
जवाब देंहटाएं.. Straight from the oven !
हटाएंFreshly baked thought !
: )
Thank you Sa.
वाह!!!
जवाब देंहटाएंकविता जी नहीं तो क्या खाक लिखी...
बहुत लाजवाब सृजन।
अनंत आभार सुधा जी ।
हटाएंअनायास यह बात सूझी !
किसी ने पढ़ी या नहीं,
कहीं छपी या नहीं ..
किंतु प्रश्न आखिर है यही,
कविता जो लिखी
वह गुनी या नहीं !
: )
एकदम सटीक बात कहा है।
जवाब देंहटाएंबात पर अमल भी हो तो बात बने !
हटाएंअपनी ये नीयत बनी रहे दुआ कीजिए !
Sahi hai
जवाब देंहटाएंसच भी हो, कोशिश यही है !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनाम पाठक !