आओ
एक नए दिन का
सहर्ष स्वागत करें ।
आए हैं सिया राम
लंका जीत कर ।
अभिनन्दन करें ।
हम भी अपने-अपने
युद्ध जीतने का
संकल्प करें ।
यथासंभव
प्रसन्न रहने का
प्रयत्न करें ।
दिये की लौ से
तिमिर का
तिलक करें ।
नन्हे दियों सी
छोटी खुशियों का
आनंद संजोएं ।
मर्मभूमि पर हृदय की
सियाराम लिख
वंदन करें ।
आओ जीवन की
विसंगतियों को
त्यौहार में बदल दें ।
आओ आशा के
टिमटिमाते दियों की
झिलमिलाती रोशनी में
अल्पना बन संवर जाएं ।
Felt rejuvenated after reading the poem. Thanks!
जवाब देंहटाएंराम नाम का बल अपार है सा ।
हटाएंतुलसी बिरवा बाग के सींचे ते मुरझायें
राम भरोसे जे रहें परबत पे लहरायें
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-11-2019) को "यूं ही झुकते नहीं आसमान" (चर्चा अंक- 3506) " पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
-अनीता लागुरी 'अनु'
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धन्यवाद अनीता जी. नमस्ते.
हटाएंचर्चा का शीर्षक शामिल होने को प्रोत्साहित कर रहा है.
बहुत ही सुन्दर लिखा है। सब कुछ हम पर ही है, की हम ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंको कैसे जीना चाहते हैं।
भली कही नम्रता.
हटाएंनमस्ते पर तुम्हारा सहर्ष स्वागत है.
धन्यवाद.
Beautiful!
जवाब देंहटाएंThank you.
हटाएंGlad you liked.
Welcome to namaste !
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