गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

घुलने दो रंग



दिल और दिमाग़ की
खिड़कियां खुली रखना ।
ताज़ा हवा आने देना ।

ज़रूरी नहीं हमेशा
हम जो सोचते हों,
वही सही हो ।

सामने वाले की
नज़र से सोचना भी,
कभी कभी
होता है अच्छा ।

रंग कोई भी
हो जाता है दूना,
जब उसमें घुलने दो
कोई रंग दूसरा ।



चित्र साभार - सुवीर शांडिल्य 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जितनी सुन्दर कविता , उतना ही सुन्दर चित्र। वाह

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    1. अनंत आभार अनमोल सा ।
      रंग होते ही ऐसे हैं ।
      अपने रंग में रंग लेते हैं ।

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  2. वाह अनेकांत जैसा सुंदर प्रभावशाली चिंतन।

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  3. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (0५ -१०-२०१९ ) को "क़ुदरत की कहानी "(चर्चा अंक- ३४७४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  4. बहुत सुंदर कविता।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  5. बहुत सुंदर भाव और चिंतन।
    सुंदर रचना।

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  6. bahut sundar ,,,aur bilkul sahi ;isse hara rang yaad a gya ...jaise peela aur neela se hara rang banta hai .

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