जो पूछना नहीं भूलते
कैसे हैं आपके पौधे ..
उन्हें पता है
आपकी जान बसती है
अपने पौधों में,
जैसे कहानियों में
अक्सर राजा की
जान बसती थी
हरे तोते में ।
उन्हें आभास है
जीवन की
क्षणभंगुरता का ।
इसलिए जी उनका
उत्साह से छलकता
स्वच्छ ताल गहरा..
जिसमें खिलते
अनुभूति के कमल ।
जल में सजल
जीवन का प्रति पल ।
आहा। स्वच्छ जल का तालाब सलामत रहे। स्वच्छ रहे।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंताल स्वच्छ रहे
जवाब देंहटाएंतरंग उठती रहे
धन्यवाद अनमोल सा.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीया यशोदा जी,
हटाएंहार्दिक आभार.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी. नमस्ते.
हटाएंBahut sunder didi
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद.
हटाएंवाह!!बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शुभा जी.
हटाएंआती रहिएगा नमस्ते पर.
वाह!स्वच्छ ताल में तिरते सरसिज-भाव!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका.
हटाएंआपने इतने सुन्दर शब्दों में सराहना की.
ऐसा लगा जैसे तमगा मिल गया.
पुनः धन्यवाद.
वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन...
शुक्रिया,सुधाजी. प्रोत्साहन ही पुरस्कार है.
हटाएंसुंदर रचना 👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधाजी.
हटाएंआप सब लोग पढ़ लेते हैं, यही सबसे सुन्दर बात है.