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रविवार, 7 जुलाई 2019

जलमय सजल मन




जो पूछना नहीं भूलते
कैसे हैं आपके पौधे ..
उन्हें पता है
आपकी जान बसती है
अपने पौधों में,
जैसे कहानियों में
अक्सर राजा की
जान बसती थी
हरे तोते में ।

उन्हें आभास है
जीवन की
क्षणभंगुरता का ।
इसलिए जी उनका
उत्साह से छलकता
स्वच्छ ताल गहरा..
जिसमें खिलते
अनुभूति के कमल ।
जल में सजल
जीवन का प्रति पल ।


17 टिप्‍पणियां:

  1. आहा। स्वच्छ जल का तालाब सलामत रहे। स्वच्छ रहे।

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. ताल स्वच्छ रहे
    तरंग उठती रहे

    धन्यवाद अनमोल सा.

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. वाह!स्वच्छ ताल में तिरते सरसिज-भाव!

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार आपका.
      आपने इतने सुन्दर शब्दों में सराहना की.
      ऐसा लगा जैसे तमगा मिल गया.
      पुनः धन्यवाद.

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  7. उत्तर
    1. शुक्रिया,सुधाजी. प्रोत्साहन ही पुरस्कार है.

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  8. उत्तर
    1. धन्यवाद अनुराधाजी.
      आप सब लोग पढ़ लेते हैं, यही सबसे सुन्दर बात है.

      हटाएं

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