गुरुवार, 2 मई 2019

भई ये लोकतंत्र है




भई ये लोकतंत्र है ..
वो भी संसार का सबसे बड़ा !
कोई क्या कह सकता है किसी को !
पर भाइयों और बहनों कभी तो सोचो !
हम इस लोकतंत्र में रहने लायक हैं क्या ?
लोकतंत्र में रहने के कर्तव्य हमें क्या होंगे पता !
संविधान में दिए अधिकार भी मालूम हैं क्या ?
फिर किसको देते हो किसका वास्ता ?
कैसा वास्ता ? मेरे भाई कैसा वास्ता ?
बंद करो ऊँची आवाज़ में चिल्लाना !
कुछ नहीं तो नागरिकता का ही पाठ पढ़ो !
खुद समझो और समझने में मदद करो !
केवल नारों से मत कृतार्थ करो जन मानस को !
अपने सिद्धांतों को खंगाल अब अमल करो !
नीचे उतरो मंच से, आसन छोड़ो और श्रम करो !
नेता को अपशब्द कह छाती मत ठोंको !
नेता हम जैसा है ! हमारे बीच से ही आता है ।
वह देश भक्त ना रहे तो अपदस्थ करो !
पर बाहर तो निकलो बिल से और वोट करो !
अफ़सर और नेता को समझाने से पहले
ख़ुद तो पहले ज़िम्मेदारी अपनी समझो !
जम कर आलोचना करो यदि उचित हो !
पर काम करो खुद भी और सबको करने दो !


17 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. मन की वीणा का धन्यवाद ।
      बोलने से नहीं
      कुछ करने से
      बदलते हैं हालात ।
      गाँठ बांध लीजिए
      बस ये एक बात ।

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  2. Hammer on the nail! Very relevant to the condion of politica and society at the day. Was just discussing, how low are we stooping this election season! Having no idea of the actual manifestos of the parties!

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    उत्तर
    1. Thank you Anmol Sa.
      The point I was trying to make was that leaders rise from the masses. So what's the point for blaming them all the time doing nothing ourselves. We are no different. If we play our part well, there will be no time to blame others endlessly.Let us be accountable to our own selves first.

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  3. उत्तर
    1. पता नहीं रंजन औरों को दिखाया या खुद को याद दिलाया ।
      बहरहाल, ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
      आते रहियेगा ।

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार मई 05 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. वाहह्हह... सार्थक सृजन👍

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    उत्तर
    1. शुक्रिया श्वेताजी ।
      प्रोत्साहित करने के लिए ।

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  6. अफ़सर और नेता को समझाने से पहले
    ख़ुद तो पहले ज़िम्मेदारी अपनी समझो !
    वाह!!!
    क्या बात है...
    बहुत लाजवाब।

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  7. धन्यवाद सुधा जी ।
    हम सब अपनी-अपनी जगह सही होते,
    तो कुछ ग़लत होता ही क्यों ?

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  8. बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति।

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    1. हार्दिक आभार शर्माजी.

      अपनी-अपनी सब कहते हैं
      दूजे की कोई सुनता नहीं
      फिर भी शिकायत कम नहीं
      हम ख़ुद कुछ करते क्यों नहीं ?

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  9. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

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