शनिवार, 21 जुलाई 2018

मांग लेना मनचाहा

स्नेह के अधिकार से
मांगो तो मनचाहा
मिलता है ।
और क्या है
मन की चाहना,
ये भी मायने रखता है ।
देने वाला
देने से पहले
लेखा-जोखा करता है ।
किसको देना है ?
कितना देना है ?
किन शर्तों पर देना है ?
पर तुम ये सब
मत सोचना ।
मनचाहा मांग लेना ।

नभ से
चाँद-तारे नहीं,
विशाल हृदय और
दिल में सबके लिए
जगह मांगना ।

हरे-भरे पेड़ों से
फल-फूल और
ठंडी छाँव ही नहीं,
उस राह से जो गुज़रे
उदारता के बीज बोते हुए,
उन नेकदिल पथिकों का
पता-ठिकाना मांगना ।

नदी से
गगरी भर जल ही नहीं,
लहरों का
निश्छल भावावेग,
लय में
बहते रहने का मंत्र,
और मन की गहराई मांगना ।

ठोकरों से संभलने का हौसला मांगना ।
चट्टानों से अडिग दृढ़ता मांगना 
कड़वे अनुभवों से संवेदना मांगना ।
फूलों से पराग मांगना ।
जुगनुओं से रोशनी मांगना ।
भवितव्य से चुनौती मांगना ।
भाग्य से कर्मठ जीवन मांगना ।
ठाकुरजी से सद्बुद्धि और भक्ति मांगना ।

कुछ ना रह जाए अनकहा ।
मांग लेना मनचाहा ।


3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. शास्त्रीजी और दिग्विजयजी का हार्दिक आभार.
    सुप्रभातम.

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  3. बहुत सुंदर, उदात्त भावों से सजी भावभीनी रचना

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