शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

कविता जब सूझी





कविता जब सूझी, 
झट लिख दी । 

बौद्धिक श्रृंगार किया नहीं ।
शब्दों को संजोया नहीं । 
बेवजह मंथन किया नहीं ।
चाँद - सितारे जड़े नहीं ।   

नाप - तोल के देखा नहीं,
लाग - लपेट में पड़े नहीं । 
बस जैसी मन में उपजी, 
वैसी ही अर्पित कर दी। 

भावना सच्ची थी। 
बस इतनी गुणवत्ता थी। 
वर्ना बात ही तो थी ,
कहनी थी कह दी। 


9 टिप्‍पणियां:

  1. It's simple and lucid yet effective with natural way of expressing

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  2. aapne keh diya, humne samajh liya :)
    baat sateek hai, aapki saralta ka prateek ha

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    उत्तर
    1. कविता सार्थक हुई,
      जब समझी गई ।

      आभार Anmol Mathur.
      फिर तशरीफ़ लाइएगा ।

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