कविता जब सूझी,
झट लिख दी ।
बौद्धिक श्रृंगार किया नहीं ।
शब्दों को संजोया नहीं ।
बेवजह मंथन किया नहीं ।
चाँद - सितारे जड़े नहीं ।
नाप - तोल के देखा नहीं,
लाग - लपेट में पड़े नहीं ।
बस जैसी मन में उपजी,
वैसी ही अर्पित कर दी।
भावना सच्ची थी।
बस इतनी गुणवत्ता थी।
वर्ना बात ही तो थी ,
कहनी थी कह दी।
It's simple and lucid yet effective with natural way of expressing
जवाब देंहटाएंGlad you liked Nitin Shinde.
हटाएंDo keep visiting the blog and sharing your views.
Thank you.
aapne keh diya, humne samajh liya :)
जवाब देंहटाएंbaat sateek hai, aapki saralta ka prateek ha
कविता सार्थक हुई,
हटाएंजब समझी गई ।
आभार Anmol Mathur.
फिर तशरीफ़ लाइएगा ।
सुंदर
जवाब देंहटाएंRavindra Singh Yadav ji,
हटाएंधन्यवाद ।
पुनः पधारियेगा ।
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद Radha Tiwari जी ।
हटाएंपढ़ती रहिएगा ।
I believe that is among the such a lot significant info for me.
जवाब देंहटाएंAnd i'm happy reading your article. But should commentary on few general issues, The web site style is wonderful, the articles is really
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