भई, तुमसे किसने कहा था !
किसने कहा था कि किस्मत से उलझो ?बल्कि समझाया था ..
वक्त की नज़ाकत समझो !
जो होता है होने दो !
होनी को कौन टाल पाया है ?
सब प्रभु की माया है !
कुछ भी ऊल-जलूल मत बको !
देखो अपनी हद में रहो ..
पर तुम्हें तो जीवन की
पोथी को बांचना है !
ज़िंदगी के हर इम्तिहान की
कॉपी को जांचना है !
भाग्य से लङ कर गढ़ जीतना है !
अपने जीवट का जौहर दिखाना है !
नट का नाच
सीखना और सिखाना है !
जमूरा नहीं.. उस्ताद बन कर
खेल दिखाना है !
खैर..देखो अब नतीजा क्या निकलता है !
तुम्हारा माद्दा पास या फ़ेल होता है !
कब तक टिकोगे बहाव के आगे ?
डूबते हैं जो बाज़ नहीं आते !
अच्छा जाओ.. जो मन में आये करो !
अभिमन्यु की तरह चक़व्यूह से लङो !
पराक़म करो !
जिसका जो होना है सो होना है !
पर तुम्हें भी जो करना है सो करना है !
जीवन की ये कैसी विडंबना है !
पर तुम्हारा ये कहना है -
विडंबनाओं को साथ लेकर जीना है.
विसंगतियों को स्वीकार करना है..
और फिर परास्त करना है.
तो ठीक है..
अब जैसा तुम कहो.
कोई चमत्कार हो ना हो,
मन का माना हो ना हो,
जीवन तो अपने विवेक से जीना है.
जीवन तो अपने विवेक से जीना है.
बहुत अच्छी कविता,एकदम दिल को छु लेने वाली,आपको हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संजय भास्कर जी ।
हटाएं