बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

करारनामा


करारनामा  
जब से ...

तुम्हारे नाम लिखी चिट्ठी
जब से डाक में
लौट आई है,
तब से मैंने तुम्हें
चिट्ठी लिखना
छोड़ दिया है.

अब मैंने
अपने नाम आई
हर चिट्ठी को
सहेजना,
बार-बार पढना
शुरू कर दिया है.


करारनामा २ 

अब ..

जब से तुमने
मेरे प्यार का इज़हार,
इश्तहार से भी बेकार
करार दिया है ;
तब से मैंने
तक़दीर से तकरार
करना छोड़ दिया है.
पर अब.. मैं प्यार
देने वालों को
बेबस लाचार,
चेष्टा अनाधिकार
करने वाला..
नहीं समझता.
अब मैं
ज़रा-सा भी
प्यार-दुलार
मिले तो
बेझिझक अपनाता हूँ.
उत्सव मनाता हूँ.
जिसका स्नेह मिले,
उसका आभार
मानता हूँ.
जो आत्मीयता से
अपना कहे,
उसे हृदय से लगाता हूँ.



करारनामा ३ 

करार

जानते हो क्यों ?
क्योंकि बहुत कुछ खो कर
मैंने पाना सीखा है.
अवहेलना सह कर
भावनाओं का
आदर करना सीखा है.
कोई समझ क्यों नहीं पाता . .
इस उलझन को सुलझा कर
अव्यक्त को समझ लेना सीखा है.

जो मुझे नहीं मिला
मैंने देना सीखा है.



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ अपने मन की भी कहिए