रविवार, 24 सितंबर 2017

मित्रता




गले लगाया उसने मुझे 
और कहा,
जैसी भी तुम हो 
मुझे भाती हो । 

तुमने मुझे 
कुछ कम पाया
और जताया,
रंग तुम्हारे फीके हैं,
और कई जगह दरार है,
कुछ करो ।

उसकी दरियादिली,
तुम्हारी नुक्ताचीनी,
दोनों मुझे स्वीकार हैं ।
मन में आभार है ।

उसने मुझे अपनाया ।
तुमने सजग बनाया ।
दोनों से रिश्ता बरकरार है ।
तकरार में मनुहार है ।
मेरे बारे में तुमने 
सोचा तो सही !
ये भी कम नहीं ।

दोनों तटों के बीच 
स्नेह की नदी 
कल कल बहती है ।
दो मुंडेरों के बीच  
जैसे मित्रता के खेत 
लहलहाते हों ।
सहृदयता के सरोवर में 
मानो कृतज्ञता के 
कमल खिले हों ।

विचार और व्यवहार के 
दो सूत्र जहाँ जुड़ते हों,
संवेदना के उस क्षितिज पर 
अपनत्व का सूर्य 
अस्त और उदय होता है ।


8 टिप्‍पणियां:

  1. गले लगाया उसने मुझे
    और कहा,
    जैसी भी तुम हो
    मुझे भाती हो ।


    वाह वाह। अप्रतिम, यूँ के जैसे-

    गुनगुनाती हुईं आईं हों फलक से कुछ बूंदे।
    लगता है कोई बदली किसी पायजेब से टकराई हो।

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    उत्तर
    1. बूंदों के नूपुरों की रुनझुन आपने ही सुनी ।
      बदली बरस गई । मिट्टी की खुशबू आई । बरखा मन को भाई ।

      सादर नमस्कार ।
      और बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. आभार सहित धन्यवाद सुधाजी ।
      आपको पढ़ कर अच्छा लगा,
      ये जान कर अच्छा लगा ।

      हटाएं

  3. विचार और व्यवहार के
    दो सूत्र जहाँ जुड़ते हों,
    संवेदना के उस क्षितिज पर
    अपनत्व का सूर्य
    अस्त और उदय होता है ।
    ....ये पंक्तियाँ सुविचार के रूप में सँजोकर रखूँगी ।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी । बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभिव्यक्ति अनुभव एवं अनुभूति जन्य है ।
      ये अनुभव जीवन की देन है ।
      आपको अच्छा लगना ही सबसे बड़ा पुरस्कार है । कृपया साथ रहिएगा । अच्छा लगेगा ।

      हटाएं
  4. चित्र साभार : सुवीर शांडिल्य
    धन्यवाद सुवीर ।

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  5. आदरणीया यशोदा जी,
    बहुत बहुत आभार आपका ।
    सौभाग्य हमारा ।

    विलंब के लिए क्षमा कीजिएगा ।
    आप सबका मार्गदर्शन मिलता रहे ।
    नमस्ते ।

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