गले लगाया उसने मुझे
और कहा,
जैसी भी तुम हो
मुझे भाती हो ।
तुमने मुझे
कुछ कम पाया
और जताया,
रंग तुम्हारे फीके हैं,
और कई जगह दरार है,
कुछ करो ।
उसकी दरियादिली,
तुम्हारी नुक्ताचीनी,
दोनों मुझे स्वीकार हैं ।
मन में आभार है ।
उसने मुझे अपनाया ।
तुमने सजग बनाया ।
दोनों से रिश्ता बरकरार है ।
तकरार में मनुहार है ।
मेरे बारे में तुमने
सोचा तो सही !
ये भी कम नहीं ।
दोनों तटों के बीच
स्नेह की नदी
कल कल बहती है ।
दो मुंडेरों के बीच
जैसे मित्रता के खेत
लहलहाते हों ।
सहृदयता के सरोवर में
मानो कृतज्ञता के
कमल खिले हों ।
विचार और व्यवहार के
दो सूत्र जहाँ जुड़ते हों,
संवेदना के उस क्षितिज पर
अपनत्व का सूर्य
अस्त और उदय होता है ।
गले लगाया उसने मुझे
जवाब देंहटाएंऔर कहा,
जैसी भी तुम हो
मुझे भाती हो ।
वाह वाह। अप्रतिम, यूँ के जैसे-
गुनगुनाती हुईं आईं हों फलक से कुछ बूंदे।
लगता है कोई बदली किसी पायजेब से टकराई हो।
बूंदों के नूपुरों की रुनझुन आपने ही सुनी ।
हटाएंबदली बरस गई । मिट्टी की खुशबू आई । बरखा मन को भाई ।
सादर नमस्कार ।
और बहुत बहुत आभार ।
वाह !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
आभार सहित धन्यवाद सुधाजी ।
हटाएंआपको पढ़ कर अच्छा लगा,
ये जान कर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंविचार और व्यवहार के
दो सूत्र जहाँ जुड़ते हों,
संवेदना के उस क्षितिज पर
अपनत्व का सूर्य
अस्त और उदय होता है ।
....ये पंक्तियाँ सुविचार के रूप में सँजोकर रखूँगी ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी । बधाई ।
अभिव्यक्ति अनुभव एवं अनुभूति जन्य है ।
हटाएंये अनुभव जीवन की देन है ।
आपको अच्छा लगना ही सबसे बड़ा पुरस्कार है । कृपया साथ रहिएगा । अच्छा लगेगा ।
चित्र साभार : सुवीर शांडिल्य
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुवीर ।
आदरणीया यशोदा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
सौभाग्य हमारा ।
विलंब के लिए क्षमा कीजिएगा ।
आप सबका मार्गदर्शन मिलता रहे ।
नमस्ते ।