गुरुवार, 14 सितंबर 2017

अपने मन की भी कहना



नदी में बहते पानी
सरोवर में खिले कमल
पहाड़ों पर जमी बर्फ़
खेतों में खिली सरसों
बच्चों से भरी स्कूल बस
पुल पर से गुज़रती रेल
कच्चे पक्के घरों
शतरंज के मोहरों
सियासती पैंतरों
किस्मत की लकीरों
अपनों की बेरुखी
पुरानी चोट की पीर
वक़्त की बेअदबी
झरने सी हँसी
जानलेवा रूप
खिली खिली धूप
सामाजिक मसले
रिश्तों के पचड़े .. 

और ऐसी तमाम बातें  . .
इन सबके बारे में लिखना ।

जब सब कह चुको ।
वेद पुराण बाँच चुको,
तब एक बात,
बस एक बार,
अपने मन की भी कहना ।

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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    1. सुधी जनों के बीच जगह देने के लिए शुक्रिया ।
      बहुत आभार ।

      हटाएं
  3. वाह! लाज़वाब, काश हमेशा अपने मन की ही कही जा सकती. सुन्दर रचना

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    1. मन की
      कही-अनकही का
      लेखा-जोखा,
      भावुक कविता ।

      आभारी हूँ । आपने विचारों का सिलसिला आगे बढ़ा दिया ।

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. पढ़ने वालों का सुंदर मन ।
      जैसे विशाल नीला गगन ।

      बहुत बहुत आभार ।

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  5. मन की कहना कठिन है, मन मे रखना भार
    खिली खिली सी धूप सी, रचना का आभार।

    बहुत ही अप्रतिम रचना नूपुरम जी। लुत्फ़ आया।

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    1. आपको अच्छी लगी
      ये जान कर,
      सराहना की धूप पा कर,
      कविता खिल उठी ।

      आपका मार्गदर्शन मिलता रहे ।
      पढ़ने वालों को अच्छा लगे,
      इससे ज़्यादा
      कविता को
      क्या चाहिए ?

      आभार । धन्यवाद ।

      हटाएं
  6. शुभ प्रभात
    कैसे लिख लेती हैं आप
    इतना बढ़िया
    है कौन
    प्रेरणा आपकी
    चाहती हूँ पाना
    परिचय उनका
    और ऐसी
    तमाम बातें . .
    इन सबके बारे
    में लिखना ।
    या फिर
    करिएगा प्रेषित
    मेरे नमन
    सादर

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  7. जब कोई न था कवि को जानता ।
    तब जिसने केवल कविता को परखा ।
    उसने ही दी मन से लिखने की प्रेरणा ।
    कविता बन बही कल-कल भावों की सलिला ।

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  8. आपका परनाम हम पहुंचा दिए ।
    आपको भी हमारा परनाम पहुंचे ।

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  9. बहुत सुंदर । इतनी सादगी से जिंदगी की सबसे बढ़िया सीख दे डाली आपने...

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