बहनें ऐसी होती हैं ।
बड़ी हों तो,
हाथ के बुने
स्वेटर के नरम फंदों जैसी,
उम्मीदों के
बेल - बूटे बुनती हैं ।
शीत के दिनों में,
आग तापने जैसी ,
ममता की
ऊष्मा देती हैं ।
बहनें ऐसी होती हैं ।
छोटी हों तो
वर्षा की बूंदों का
जलतरंग बन ,
जी बहलाये रहती हैं ।
खट्टी - मीठी गोली जैसी ,
जीवन में
स्वाद बनाये रखती हैं ।
बहनें ऐसी होती हैं ।
हमउम्र हों तो
हमजोली होती हैं ।
झूले की पेंग होती हैं ।
मन के ताल से छलकती ,
जीने की
उमंग होती हैं ।
बहनें ऐसी होती हैं ।
बहनें
दिन में सूरज की रोशनी ,
रात में चंदा की चांदनी होती हैं ,
बहनें बहुत अपनी होती हैं ।
बहनें
अबूझ पहेली होती हैं ।
चुपचाप बलाएं ,
अपने सर ले लेती हैं ।
अच्छे दिनों में
शीतल छाँव सी ,
आड़े वक़्त में
ढाल बन जाती हैं ।
ज़िंदगी भर लड़ती - झगड़ती
तंग करती हैं ,
और ज़रुरत पड़े तो
दुनिया भर से
लड़ पड़ती हैं ।
सुख में ठंडी बयार,
दुःख में
मीठी लोरी होती हैं ।
बहनें ऐसी होती हैं ।
उम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएं