हारने के डर से
अभिमन्यु लड़ना नहीं छोड़ता ।
तो क्या हुआ
कि उसकी विद्या अधूरी है ?
चक्रव्यूह को भेद कर
बाहर निकलना आना ज़रूरी है ।
अभिमन्यु को पता है,
युद्ध टाला नहीं जा सकता ।
समय पर जो विद्या
काम ना आए,
उस विद्या का उपयोग क्या ?
अभिमन्यु पीछे नहीं हट सकता ।
तो क्या हुआ
कि वो अर्जुन नहीं ?
कृष्ण तो बिल्कुल नहीं ।
पर वो अभिमन्यु तो है ।
अभिमन्यु मृत्यु से नहीं डरता ।
उसे पता है ,
वो चक्रव्यूह
भेद नहीं पायेगा ।
पर विजय ना सही,
वीरगति तो पायेगा।
पराक्रम की
आधारशिला रख जायेगा ।
अभिमन्यु लड़े बिना
कहीं नहीं जायेगा ।
क्रूर शूरवीरों को
पाठ पढ़ा कर जायेगा ।
अपना कर्तव्य
पूरा करके जायेगा ।
अंतिम श्वास तक
लड़ कर जायेगा ।
उसे पता है,
महायुद्ध का
यह अंत नहीं ।
युद्ध कोई निष्कर्ष नहीं,
मतभेद का ।
पर अन्याय सहना भी,
कोई विकल्प नहीं ।
स्वाभिमान की रक्षा,
हर मनुष्य का
कर्तव्य है ।
और आत्मबल ही
सबसे बड़ा बल है ।
फिर भय कैसा ?
भयभीत होना
अभिमन्यु ने नहीं सीखा ।
उसने बस इतना जाना,
कर्म ही है गीता ।
फिर संशय कैसा ?
जो अपनी
सामर्थ्य भर लड़ा है,
वही योद्धा जीता है ।
तो क्या हुआ
कि उसकी विद्या अधूरी है ?
चक्रव्यूह को भेद कर
बाहर निकलना आना ज़रूरी है ।
अभिमन्यु को पता है,
युद्ध टाला नहीं जा सकता ।
समय पर जो विद्या
काम ना आए,
उस विद्या का उपयोग क्या ?
अभिमन्यु पीछे नहीं हट सकता ।
तो क्या हुआ
कि वो अर्जुन नहीं ?
कृष्ण तो बिल्कुल नहीं ।
पर वो अभिमन्यु तो है ।
अभिमन्यु मृत्यु से नहीं डरता ।
उसे पता है ,
वो चक्रव्यूह
भेद नहीं पायेगा ।
पर विजय ना सही,
वीरगति तो पायेगा।
पराक्रम की
आधारशिला रख जायेगा ।
अभिमन्यु लड़े बिना
कहीं नहीं जायेगा ।
क्रूर शूरवीरों को
पाठ पढ़ा कर जायेगा ।
अपना कर्तव्य
पूरा करके जायेगा ।
अंतिम श्वास तक
लड़ कर जायेगा ।
उसे पता है,
महायुद्ध का
यह अंत नहीं ।
युद्ध कोई निष्कर्ष नहीं,
मतभेद का ।
पर अन्याय सहना भी,
कोई विकल्प नहीं ।
स्वाभिमान की रक्षा,
हर मनुष्य का
कर्तव्य है ।
और आत्मबल ही
सबसे बड़ा बल है ।
फिर भय कैसा ?
भयभीत होना
अभिमन्यु ने नहीं सीखा ।
उसने बस इतना जाना,
कर्म ही है गीता ।
फिर संशय कैसा ?
जो अपनी
सामर्थ्य भर लड़ा है,
वही योद्धा जीता है ।
bahut badhiya!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ।
हटाएं👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंकम से कम अभिमन्यु से प्रेरित होकर उनकी तरह सद्गति प्राप्त करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है । आभार ।
हटाएंबहुत प्यारी और "how's the josh! High sir" बुलवाने वाली कविता। एक और महत्वपूर्ण बात, इन्ही वीर अभिमन्यु के पुत्र ने गर्भ में ही ठाकुर जी के दर्शन किये! आगे भी वीरता,सत्कर्म और सहजता से भागवत के प्रथम श्रोता बने! वीरता और कर्म पिता तक ही नही,पुत्र तक गया! और आज तक हम सब प्रेरित हो रहे हैं।
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