कहो कब बरसोगे घन ?
कब पावन होगा मन ?
कब बूँदों की ताल पर
आँगन आँगन झूमेगा ?
कब बावरा होगा मन ?
कब वर्षा को आँचल में भर
छलकेंगे ताल तलैया ?
कब तृप्त होगा मन ?
कब मिटटी को गूंथेगा जल
धरती में अंकुर फूटेगा ?
कब कुसुमित होगा मन ?
कब मेघों की गर्जना पर
मयूर पंख फैलाएगा ?
कब थिरकेगा मन ?
कब साँवले आकाश पर
इंद्रधनुष मुस्काएगा ?
कब बलिहारी जाएगा मन ?
कब कल्पना के खुलेंगे पर
कवि चित्रकार बन पाएगा ?
कब भावुक होगा मन ?
कहो कब बरसोगे घन ?
कब पावन होगा मन ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कुछ अपने मन की भी कहिए