जब छत से आँगन में धूप उतरती है,
मुझे लगता है कि तुम हो ।
तुम हो ।
सुनहरी धूप की गुनगुनी छुअन तुम हो ।
मेरी हर बात में तुम हो ।
हर इक अहसास में तुम हो ।
जब घर की क्यारी में फूल खिलते हैं,
मुझे लगता है कि तुम हो ।
तुम हो ।
इन फूलों की भीनी खुशबू तुम हो ।
मेरी हर बात में तुम हो ।
हर इक अहसास में तुम हो ।
जब खेतों में पुरवाई चलती है,
मुझे लगता है कि तुम हो ।
तुम हो ।
चंचल हवाओं की अल्हड़ शोखी तुम हो ।
मेरी हर बात में तुम हो ।
हर इक अहसास में तुम हो ।
जब बरामदे में बच्चे शोर मचाते हैं,
मुझे लगता है कि तुम हो ।
तुम हो ।
शरारती बच्चों की मासूमियत तुम हो ।
मेरी हर बात में तुम हो ।
हर इक अहसास में तुम हो ।
जिसको उस पर अटूट विशवास होता है उसे पत्येक कार्य में उसका ही अहसास होता है, इसी भाव को व्यक्त करती सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंॐ प्रकाश शर्माजी,
जवाब देंहटाएंआपका आभार .
मार्गदर्शन करते रहियेगा .
नमस्ते .
नूपुर