शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं ।
स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
शनिवार, 13 जुलाई 2013
जनाब ! कविता पक रही है !
जग आँगन में अँगीठी .. विचारों की .. सुलग रही है । भावनाओं की आँच पर, मन की पतीली में कविता खदक रही है । मनभावन महक आ रही है । बेसब्री सता रही है । आओ, झट से पंगत में बैठें, और प्रतीक्षा करें रचना परोसे जाने की ।
Leaves a smile :) good one
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंwaah! Behad umda.
जवाब देंहटाएंdhanyawad sugandha aur saurabh
जवाब देंहटाएं