मुझे
खुश रहने के लिए
कोई ज़्यादा
जुगाड़ की ..
कीनखाब
साज़ो-सामान की
ज़रुरत नहीं .
मुट्ठी भर सपने,
आसपास हों अपने,
बड़ों का आशीर्वाद,
बच्चों की शरारत,
तिल भर भरोसा,
रत्ती भर जिज्ञासा,
प्रेम की घुट्टी,
हिम्मत की बूटी,
दाल-भात या खिचड़ी ,
तवे पर फूली रोटी,
रेडियो पर बजते गाने,
श्रीमतीजी के उलाहने,
दोपहर की झपकी,
सुबह शाम की घुमक्कड़ी ..
कुल मिला कर
ज़्यादा बखेड़ा नहीं।
यही s s रोज़ का दाना-पानी
और छटांक भर
जीने की मस्ती,
बस काफ़ी हैं मेरे
खुश रहने के लिए।
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