तलब
सिखाने से
कोई कुछ नहीं
सीखता .
अनुभव
जब चढ़ाता है सान पर
आदमी को ,
तराशता है तेज़ धार पर
ज़िंदगी को,
तब
सीखने की तलब होती है .
ये तलब
सिखाती है
आदमी को
जीना .
सिखाने से
कोई कुछ नहीं
सीखता.
अनुभव सिखाता है जीना.
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