हर कोशिश तेरी इबादत हो
मुबारक हो साहबजादे !
मुबारक हो !!
रोशन रहे
आपकी दुनिया
दुआओं के नूर से !
हर काम में बरक़त हो !
पूरी हर नेक हसरत हो !
जिस भी मक़ाम से
गुजरें आप,
रौनक ही रौनक हो !
साल दर साल
सबने मनाई
सालगिरह आपकी.
इस बार अकेले
साथ अपने
जश्न मनाने की
घड़ी आई.
निकल पड़ो घर से
अकेले,
और चल पड़ो,
जिस तरफ़
सुबह बुलाती हो ..
धूप मुस्कुराती हो.
ये वक़्त है
नयी सोच का,
नयी सोच पर
अमल करने का.
सूरज की हर किरण
मिट्टी में सोये बीज को
जगाती है.
मंदिर की घंटियाँ
याद दिलाती हैं ..
ये समय है प्रार्थना का,
अपने जीवन से संवाद का.
काम पर अपने-अपने,
निकल पड़ा है हर सपना.
तुम भी मेहनत के
बल-बूते पर
सच करो
अपना सपना.
साथ कोई हो ना हो,
तुम तो अपने साथ हो !
अपने साथ हो लो.
चाक कुम्हार का
घूमता रहता है ..
और समय गढ़ता है.
अनुभव की सान पर चढ़ा कर
अपनी समझ पैनी करो.
वो देखो,
एक बच्चा अधनंगा
सड़कों पर पला,
कड़ी मेहनत से
दो वक़्त की रोटी कमाता है.
ना कोई उसे पुचकारता दुलारता है.
ना कोई गोद में बिठाता है.
फिर भी बेशरम ऐसे हंसता-बोलता है,
अपनी धुन में दिन-रात डोलता है,
किस्मत ने जैसे,
बचा के
सबकी नज़र से,
सौंप दी हो उसे
पारसमणि -
और छांव
कल्पवृक्ष की.
क्या इसने
शिव को
विषपान करते देखा था ?
जो सारे आंसू पी गया ?
या इसने
सीखा था मीरा से
विष को अमृत जान पीना
और ईश्वर के भरोसे जीना ?
ज़रा रुको !
इस उधेड़बुन में
उस बच्चे को
पीछे मत छोड़ आना.
उसे पास बुलाना,
दोस्त बनाना,
और उसकी कच्ची हंसी
निष्पाप दृष्टि से जानना ..
कि जब दो जून की रोटी का
ठिकाना नहीं,
सर पर छत नहीं,
पाँव में चप्पल नहीं,
आगे-पीछे कुछ भी नहीं ..
तब
कहीं पड़े मिले कंचे भी
कुबेर के ख़ज़ाने से कम नहीं !
दो मीठे बोल जो बोल दे
वो भगवान से कम नहीं !
फटी-पुरानी चादर और दरी
उड़न खटोले से कम नहीं !
और चूल्हे पर सिकी रोटी
अलादीन के चिराग से कम नहीं !
क्योंकि जीवन की हर संभावना
भरपेट खाने से जुड़ी है.
क्या सोचते हो ?
क्या हमारा भी कोई फ़र्ज़ बनता है ?
आज शाम जब अपने साथ बैठो,
यादों और इरादों के पन्ने पलटो,
तो जितना मिला है
उतने का शुक्रगुज़ार होना.
रोज़ के हिसाब-किताब में
कुछ समय, सोच और पैसे
उस बच्चे के लिए भी रखना.
इस बार सालगिरह पर अपनी
अकेले हो तो क्या हुआ ?
जो अकेला है,
उसके साथ हो लेना.
bahu khubsurat hridaysparshi abhivyakti. shubhkaamnayen.
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