सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

सच तो सच है

सच तो सच है ।
कहीं भी कभी भी
सर उठा कर
सीना तान कर
खङा हो सकता है, 
अचानक हमारे सामने,
हमारी आँखों में 
आँखें डाल कर
सीधे दिल में 
झाँक सकता है, 
खोल कर
अंतर्मन के कपाट।
सच तो सच है ।

पापा ने कहा है, 
पापा घर पर नहीं हैं ..
कहने वाले 
अबोध बालक की तरह
कर सकता है निरूत्तर ।

चारों खाने चित कर सकता है 
चल कर ऐसी शतरंज की चाल
जो चाल चलने वाले से पलट कर 
पूछे सवाल और दे दे मात

सच तो सच है ।
अच्छा तो बहुत लगता है,
जैसे कोई कीमती गहना..
पर चुभता भी है ।

दिन-रात से 
सच का क्या लेना-देना ?
दिन हो तो 
प्रखर सूर्य के प्रकाश में 
रात हो तो 
शीतल चंद्र की चांदनी में 
उजागर हो ही जाता है ।
सच तो सच है ।

सच को नहीं पसंद 
लुक-छिप कर रहना ।
रहस्य बने रहना 
और रूआब जमाना
अपने बङप्पन का ।
क्योंकि सच तो ..
जब तक सच है,
बहुत सरल है ।

हम उलझा देते हैं 
सच को,
जटिल बना देते हैं 
सच को अपने भय के
सांचे में ढाल कर ।

सच तो सच है ।
नदी के निर्मल जल में है ।
धुंध से परे नीले नभ में है ।
धरती की उपज में है ।
मेरी तुम्हारी नब्ज़ में है ।
ह्रदय के स्पंदन में है ।

सच तो सच है ।
जो है, सो है ।

सच तो सच है ।
उतना ही सरल,
उतना ही पेचीदा,
जितने हम हैं ।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

रोज़ आता है डाकिया


जिज्जी आज अगर आप होतीं
तो सच्ची कितना हँसती..
राम जाने !
जब आपको हम बताते
आज डाक दिवस है ।
हँसी से लोटपोट हो कर
धौल जमा कर कहतीं ..
चिट्ठी क्या कोई एक दिन
लिखे जाने की चीज़ है !
आख़िर रोज़ आता है डाकिया
लादे बस्ता भर कर चिट्ठियां !
जैसे सूरज बेनागा उदय होता है ।
ठीक उसी तरह ट्रिन-ट्रिन करता
अक्सर सायकिल पर सवार
या पैदल घर-घर फेरी लगाता है,
रोज़ आता है डाकिया ।
उसे इस बात का भान है,
किसी को इंतज़ार है 
ज़रूरी चिट्ठी, मनी आर्डर का ।
किसी ज़माने में मेघदूत आते थे, 
संदेसा लाते जवाब पहुँचाते ।
आज का मेघदूत है डाकिया ।
कोई एक दिन लिखता है भला !
चिट्ठी तो भावावेग की बाढ़ है ।
कभी किसी की दरकार है ।
प्यार भरी मनुहार है,सरोकार है ।
अकलेपन का अचूक उपचार है ।
अनुपस्थित से परस्पर संवाद है ।
ये सब क्या एक दिन की बात है ?
वाह रे ज़माने ! अजब रिवाज़ है ।
रोज़ आता है डाकिया बाँटता हुआ
चिट्ठियों में उम्मीद की अशर्फ़ियां ।
अपने बस्ते में लादे अनगिनत कहानियाँ 
सूत्रधार बन कर रोज़ आता है डाकिया ।


रविवार, 2 अक्तूबर 2022

आचरण में अनुसरण


बापू से और शास्त्री जी से
हमने पूछे अनगिनत सवाल ।
मंडवा कर चित्र आदमकद
सादर दिया खूंटी पर टांग ।
प्रतिमा भव्य गढ़वा कर
सङक किनारे कर अनावरण
बाकायदा किया दरकिनार ।
निबंध लिखो बढ़िया-सा बच्चों !
नंबर पाओ शानदार !
दिवस मनाओ ज़ोर-शोर से !
करो बङी-सी सेमिनार !
और भूल जाओ उसके बाद ।
महापुरुषों की विचारधारा 
ग़लती से भी बरखुरदार ! 
दिल पर मत ले लेना !
हो जाएगा सत्यानाश !
आदर्श मानवों को देखो
ताक पे रखा जाता है !
उनके जीवन से सीख कर
कौन जीवन जीता है !
ठोक-ठोक कर समझाया !
विसंगतियों का भय दिखाया !
पर मान गए बापू तुमको !
और शास्त्री जी के क़द को !
मुट्ठी भर ही होंगे ऐसे
एकनिष्ठ एकलव्य सरीखे 
जो चले तुम्हारे रास्ते ,
और अपने स्वाध्याय के 
बीज राह में बोते चले ।
ये मौन धरे कर्मठ योगी
भारत माँ के चरणों में 
अर्पित कर अपनी मेधा
अखंड यज्ञ करते रहे ।
ये करते नहीं नुक्ताचीनी ।
जो सीख सके जो समझ सके
अपने जीवन में पिरोते रहे ।
 
 
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चित्र अंतरजाल के सौजन्य से