सच तो सच है ।
कहीं भी कभी भी
सर उठा कर
सीना तान कर
खङा हो सकता है,
अचानक हमारे सामने,
हमारी आँखों में
आँखें डाल कर
सीधे दिल में
झाँक सकता है,
खोल कर
अंतर्मन के कपाट।
सच तो सच है ।
पापा ने कहा है,
पापा घर पर नहीं हैं ..
कहने वाले
अबोध बालक की तरह
कर सकता है निरूत्तर ।
चारों खाने चित कर सकता है
चल कर ऐसी शतरंज की चाल
जो चाल चलने वाले से पलट कर
पूछे सवाल और दे दे मात
सच तो सच है ।
अच्छा तो बहुत लगता है,
जैसे कोई कीमती गहना..
पर चुभता भी है ।
दिन-रात से
सच का क्या लेना-देना ?
दिन हो तो
प्रखर सूर्य के प्रकाश में
रात हो तो
शीतल चंद्र की चांदनी में
उजागर हो ही जाता है ।
सच तो सच है ।
सच को नहीं पसंद
लुक-छिप कर रहना ।
रहस्य बने रहना
और रूआब जमाना
अपने बङप्पन का ।
क्योंकि सच तो ..
जब तक सच है,
बहुत सरल है ।
हम उलझा देते हैं
सच को,
जटिल बना देते हैं
सच को अपने भय के
सांचे में ढाल कर ।
सच तो सच है ।
नदी के निर्मल जल में है ।
धुंध से परे नीले नभ में है ।
धरती की उपज में है ।
मेरी तुम्हारी नब्ज़ में है ।
ह्रदय के स्पंदन में है ।
सच तो सच है ।
जो है, सो है ।
सच तो सच है ।
उतना ही सरल,
उतना ही पेचीदा,
जितने हम हैं ।