मंगलवार, 19 अप्रैल 2022
संभवतः कविता . .
सोमवार, 18 अप्रैल 2022
मनुहार
फहराया आनंद प्लावित श्यामघन ध्वज
नव वर्ष का हुआ सहर्ष सादर सत्कार
चिङिया संप्रदाय गा उठा समवेत स्वर
करतल ध्वनि कर रहे मगन नव पल्लव
नदी के शांत जल की लयबद्ध कल कल
फूल श्रृंगार से शोभित धरा की हरीतिमा
प्रकृति ने मनुष्य को दी प्रचुर धन संपदा
हमने जिसे धीरे-धीरे बूंद-बूंद सोख लिया
अब भी है समय सूखे जलाशय भरने का
क्यों न हम प्रण लें इस पावन अवसर पर
जितना लें उसे बढ़ा के लौटा दें धरित्री को
आह्लादित मन भर दें धरती माँ का आंचल
मान उपकार हम भी तो दें धरा को उपहार
आइये रोपते है पौधे हम-आप भी अविराम
सींच कर जतन से करें पूरे कुदरती नेगाचार
मिल कर खिलाएं जगत में हम फूल बेशुमार
उपहार करें स्वीकार वसुंधरा से यही मनुहार
प्रेरणा चित्र साभार : नेरुल, नवी मुंबई, भारत की एक चलती-फिरती सड़क की दीवार.
माने wall art. अनाम कलाकार.
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022
एक चिरैया गौरैया
हमने सुनाई जब आपबीती
गौरैया की महिमा बखानी
तब एक नौजवान ने ठानी
नन्ही चिरैया से बतियाने की
मुक्त कंठ से हमने प्रशंसा की
नवयुवक के सहज उत्साह की
बात 'गल्प करिबो' बिरादरी की
गोष्ठी में सदस्यता बढ़ाने की थी
बात करने से सुलझती है गुत्थी
बात करने से खुलती है मनोग्रंथी
जो बात समझ नहीं पाता आदमी
चिरैया समझ जाती बिना कहे भी
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