सोमवार, 18 अप्रैल 2022

मनुहार


सूर्य रश्मि वृंद ने नीलम नभ शिखर पर 
फहराया आनंद प्लावित श्यामघन ध्वज
नव वर्ष का हुआ सहर्ष सादर सत्कार 
चिङिया संप्रदाय गा उठा समवेत स्वर
करतल ध्वनि कर रहे मगन नव पल्लव 
नदी के शांत जल की लयबद्ध कल कल
फूल श्रृंगार से शोभित धरा की हरीतिमा
प्रकृति ने मनुष्य को दी प्रचुर धन संपदा
हमने जिसे धीरे-धीरे बूंद-बूंद सोख लिया
अब भी है समय सूखे जलाशय भरने का
क्यों न हम प्रण लें इस पावन अवसर पर
जितना लें उसे बढ़ा के लौटा दें धरित्री को
आह्लादित मन भर दें धरती माँ का आंचल
मान उपकार हम भी तो दें धरा को उपहार 
आइये रोपते है पौधे हम-आप भी अविराम
सींच कर जतन से करें पूरे कुदरती नेगाचार
मिल कर खिलाएं जगत में हम फूल बेशुमार 
उपहार करें स्वीकार वसुंधरा से यही मनुहार 



प्रेरणा चित्र साभार : नेरुल, नवी मुंबई, भारत की एक चलती-फिरती सड़क की दीवार. 
माने wall art. अनाम कलाकार. 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-04-2022) को चर्चा मंच      "धर्म व्यापारी का तराजू बन गया है, उड़ने लगा है मेरा भी मन"   (चर्चा अंक-4406)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    --

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  2. आदरणीय शास्त्री जी, चर्चा में भाग लेने का अवसर देने के लिए शुक्रिया ।

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  3. अब भी है समय सूखे जलाशय भरने का
    क्यों न हम प्रण लें इस पावन अवसर पर
    जितना लें उसे बढ़ा के लौटा दें धरित्री को
    आह्लादित मन भर दें
    शायद सब पहले सा हो जाय
    बहुत ही सुन्दर सृजन।

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  4. वाह!बहुत सुंदर मनुहार।

    आह्लादित मन भर दें धरती माँ का आंचल
    मान उपकार हम भी तो दें धरा को उपहार
    आइये रोपते है पौधे हम-आप भी अविराम... वाह!

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