सूरज सुबह सुबह
चढ़ कर
जा बैठा है
आकाश की मुंडेर पर ।
चढ़ कर
जा बैठा है
आकाश की मुंडेर पर ।
रात की ओस से
भीजे बादल
डाल दिए हैं
अलगनी पर
एक तरफ़
सूखने के लिए ।
सूखने के लिए ।
पंछी निकले हैं
प्रभात फेरी के लिए ।
प्रभात फेरी के लिए ।
किरणों की वंदनवार
झिलमिला रही है,
धरती के इस छोर से
उस छोर तक ।
हर रोज़ की तरह
ज़िंदगी ने
खोल दी है
अपनी दुकान ।
ज़िंदगी ने
खोल दी है
अपनी दुकान ।
मेहनत करो
और जीतो
सुकून का ईनाम ।
एक नया दिन
सीना ताने
तैयार है,
ड्यूटी पर
जाने के लिए ।
सीना ताने
तैयार है,
ड्यूटी पर
जाने के लिए ।
और तुम्हें साथ
ले जाने के लिए ।
क्योंकि सूरज
बुला रहा है तुम्हें
कब से ।
चलो चलें ।
इस दिन का नेग
जुटाने के लिए ।
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पहली बार ऐसा हुआ।
एक युवा पाठक ने
इतने मन से
पढ़ी यह बात।
ऊपर जुड़ी water colour पेंटिंग बना डाली।
देखिए क्या खूब मिला !
सबसे निराला !
इस दिन का नेग !!
Anmol Mathur नन्हे पाठक का
तहे-दिल से शुक्रिया !